फिल्म समीक्षा: एयरलिफ्ट

साल में औसतन चार से पांच फिल्में देने वाले अक्षय कुमार ख़ुद को अलग किस्म का ‘दर्जी’ कहते हैं। इस लिहाज से हालिया रिलीज़ ‘एयरलिफ्ट’ उनकी बेहतरीन क्राफ्ट कही जाएगी। असल कहानी पर आधारित इस फिल्म ने लोगों का दिल जीत लिया। थिएटर से बाहर निकलते हुए आंखों में आंसू भरे और पैसा वसूल की फिलिंग दिल में था। लेकिन समीक्षक की नज़र में इस फिल्म ने क्या रेटिंग हासिल किया और कैसा रही कहानी, यह सब जानने के लिए आगे क्लिक करें।

Akshay Kumar in Airlift Poster

निर्माता - निखिल आडवाणी, मोनिशा आडवाणी, अरुणा भाटिया,
कृष्ण कुमार और विक्रम मल्होत्रा
निर्देशक - राजा कृष्ण मेनन
कलाकार - अक्षय कुमार, निमरत कौर, फरयान वजीर, इनामुल हक,
पूरब कोहली, कुमुद मिश्रा
संगीत - अमाल मलिक और अंकित तिवारी
जोनर - थ्रिलर ड्रामा
रेटिंग - 3.5

अगस्त 1990 में इराक हमले के बाद कुवैत में एक लाख 70 हजार भारतीय जब फंस गए थे, तो भारत सरकार ने इन्हें युद्धग्रस्त क्षेत्र से सुरक्षित बाहर निकला और यह साहसिक कारनामा एक विश्व रिकार्ड बन गया।

पहले कभी ऐसा नहीं हुआ कि किसी देश ने अपने इतने नागरिकों की जान बचाई। सच के इन दस्तावेजों को सिनेमा के परदे पर उतारने का काम राजा कृष्ण मेनन ने किया। एयरलिफ्ट नाम की इस फिल्म में इनसान के भीतर छिपे कई रंगों को कृष्ण उभारने में सफल नज़र आते दिखाते हैं।

कहानी

फिल्म की कहानी घूमती है रंजीत कत्याल (अक्षय कुमार) के इर्द-गिर्द, जो एक मतलबी किस्म का बिजनेस टायकून है। यह भारतीय खुद को कुवैती मानता है। रंजीत, पत्नी अमृता (निमरत कौर) के साथ कुवैत में ऐशो-आराम की जिंदगी जी रहा होता है।

कहानी में ट्विस्ट तब आता है, जब इराक कुवैत पर हमला करता है। इस दौरान रंजीत वहां फंसे भारतीयों को बचाने के लिए हर संभव कोशिश करता है। इस दौरान उसे कई दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। जैसे कि इंडियन एम्बेसी शुरुआत में उसकी मदद नहीं करती।

यूएन कुवैत के आयात-निर्यात पर रोक लगा देता है। रंजीत इन हालातों का सामना कैसे करता है? कैसे वह 1,70,000 भारतीयों को बचाने में अहम भूमिका निभाता है? यह जानने के लिए आपको फिल्म देखनी होगी।

न‍िर्देशन

एयरलिफ्ट में दृश्यों की एक श्रृंखला है जो रिफ्यूजी बन चुके हिंदुस्तानियों की तस्वीरों को एक धागे में पिरोती है। इसी के बीच रंजीत बगदाद के भारतीय दूतावास और दिल्ली में विदेश मंत्रालय से मदद पाने की कोशिश करता नजर आता है। राजा कृष्ण मेनन की मेहनत फिल्म में साफ दिखाई देती है।

उन्होंने छोटी -छोटी बातों का ध्यान रखा। जैसे कि जब इराक और कुवैत के बीच युद्ध हुआ था, तब सचिन तेंडुलकर कैसे दिखते थे। इसे समझाने के लिए उन्होंने उस समय के सचिन के शॉट फिल्म डाले हैं।

इराकी सेना के कुवैत पर हमले, सैनिकों द्वारा लूट-पाट के दृश्य भी हैं। दो घंटे की इस फिल्म में आपके आंखों में कभी आंसू और कभी अफसोस, कई भाव आते जाते हैं। कृष्ण आपको सीट से बांधे रखने में कामयाब नजर आते हैं।

अभि‍नय

रंजीत कत्याल बने अक्षय अपने किरदार को जीवंत करते नजर आते हैं। वहीं, उम्दा अभिनेत्रियों में शुमार निमरत कौर भी हाउस वाइफ का चरित्र बखूबी निभाया। कुमुद मिश्रा ने भी अपने किरदार के साथ न्याय किया है। इसके अलावा, पूरब कोहली, फरीना वजीर और सहित अन्य कलाकारों ने भी अच्छा काम किया है

संगीत

फिल्म का संगीत भी अच्छा है। ‘सोच न सके...’, ‘तू भूला जिसे...’ और ‘दिल चीज तुझे दे दी...’ लोगों की ज़बान पर चढ़ चुके हैं। इसका बैकग्राउंड स्कोर भी ठीक-ठाक है।

देखें या ना देखें ...

लंबे समय बाद एक बेहतरीन मूवी रिलीज हुई है, बेशक आप इसे मिस न करें। अक्षय कुमार का अभिनय, कसे हुए निर्देशन, और दिल को छू लेने वाली कहानी यदि आपको देखने का मन है, तो आप 'एयरलिफ्ट' देख सकते हैं। संबंधित ख़बरें फिल्म समीक्षा: दिलवाले