एक सवाल का जवाब है 'मिर्जिया' : राकेश ओमप्रकाश मेहरा

तीन साल के अंतराल के बाद निर्माता-तक़रीबन निर्देशक राकेश ओमप्रकाश मेहरा अपनी फिल्म 'मिर्जिया' लेकर आ रहे हैं। इस फिल्म के बारे में वो कहते हैं कि यह फिल्म एक सवाल का जवाब है। दंतकथा मिर्ज़ा-साहिबा की कहानी को आज के युवाओं के परिप्रेक्ष्य में बुना गया है। दस पंद्रह सालों पर बाद गुलज़ार ने किसी फिल्म की कहानी लिखी है। मज़ेदार बात यह है कि फिल्म के चारों कलाकार हर्षवर्धन, सय्यामी, अनुज और अंजली नए हैं।

निर्माता-निर्देशक राकेश ओमप्रकाश मेहरा की फिल्म 'मिर्ज़िया' एक सवाल का जवाब है
मुंबई। लीक से हटकर फिल्में बनाने वाले राकेश कहते हैं कि 'मिर्ज़ा-साहिबा' की कहानी कई सालों से मेरे दिमाग़ में थी। दरअसल, 'मिर्ज़ा-साहिबा' का प्ले मैंने कॉलेज में ही देखा था। इस प्ले में साहिबा मिर्ज़ा के तीर तोड़ देती है और नाटक ख़त्म हो जाता है। फिर डायरेक्टर दर्शकों से तीर तोड़ने की वजह पूछता है। मैंने उसी सवाल का जवाब इस फिल्म में खोजा है।

मिला गुलज़ार का साथ

दस पंद्रह सालों पर बाद गुलज़ार ने किसी फिल्म की कहानी लिखी है। गुलज़ार को इस फिल्म की कहानी लिखने के क़िस्से को साझा करते हुए कहते हैं, 'एकदिन मैंने गुलज़ार भाई से कहना है कि आपके घर आऊं चाय पिलाएंगे। उन्होंने कहा कि बिल्कुल आइए। फिर मैं उनके घर जा पहुंचा और उनसे मिलते ही पूछा कि साहिबा ने मिर्ज़ा के तीर क्यों तोड़े थे।

'राकेश आगे कहते हैं कि इतना सुनने के बाद गुलज़ार भाई की आंखों में चमक आ गई और कहा उन्होंने कहा,' बच्चू इसका जवाब तो तुम दो। 'इसके बाद गुलज़ार इस फिल्म की कहानी लिखने को तैयार हो गए। राकेश ने बताया कि साल 2013 में आई फिल्म 'भाग मिल्ख भाग' से पहले ही इसका फर्स्ट ड्रॉफ़्ट तैयार हो चुका था।

बतौर निर्देशक राकेश ओमप्रकाश मेहरा की यह पांचवी फिल्म है और पहली 'प्रेम कहानी' पर आधारित फिल्म है। इससे पहले उन्होंने राजनीति और भ्रष्टाचार पर आधारित फिल्में बनाई है।

न्यूकमर्स का साथ

कहानी नई थी और कहने का भी तरीक़ा भी नया था, सो मैंने नया चेहरा लेने का इरादा किया। मज़ेदार बात यह है कि फिल्म के चारों कलाकार हर्षवर्धन, सय्यामी, अनुज और अंजली नए हैं। हर्षवर्धन से मेरी मुलाक़ात फिल्म 'दिल्ली -6' के दौरान हुई थी। हर्ष शर्मीला और खुद में रहने वाला लड़का है और सय्यामी भी मिडिल क्लास सोच वाली और मेहनती लड़की है।

स्क्रीनप्ले में लगता है समय 

फिल्मों के बीच इतना लंबा अंतराल होने की वजह बताते हुए कहते हैं कि बॉलीवुड में राइटर्स हैं, लेकिन स्क्रीन राइटर्स की तादाद कम है। लिखी हुई कहानी को स्क्रीनप्ले लिखने में मुझे समय लगता है। मैं सबकुछ नया करने में विश्वास करता हूं। हर फिल्म का एक अस्तित्व होता है, जिसे तलाशने में समय लग जाता है। फिल्ममेकिंग पर राय देते हुए कहते हैं कि मेरे लिए फिल्ममेकिंग मेरे कुछ कहने का जरिया या किसी सवाल के जवाब की तलाश है। यह जर्नी है और फिल्ममेकिंग मुझसे अलग नहीं है।

सौ करोड़ी फिल्में

सौ करोड़ी कारोबार वाली फिल्मों पर टिप्पणी करते हुए कहते हैं कि बॉक्स ऑफिस कलेक्शन सफल फिल्म का पैमाना नहीं है। हां, फिल्म का मुनाफ़ा कमाना ज़रूरी है, लेकिन सौ करोड़ सफल फिल्म की क्राइटेरिया नहीं बननी चाहिए। राकेश कहते हैं कि जब तक मेरी फिल्म दर्शकों के मन तक न पहुंचे, तब तक उस फिल्म को मैं कामयाब नहीं मानता। हम फिल्ममेकर हैं, कोई घोड़ों की रेस का हिस्सा नहीं है, जो कमाओ-कमाओ पर फोकस करें।

फिल्मों के प्रमोशन के बारे में वो कहते हैं कि प्रमोशन से ओपनिंग ही अच्छी मिलती है। जो फिल्म सोमवार तक थिएटर में रह जाए, वो अच्छी फिल्म या कामयाब फिल्म कही जा सकती थी। लेकिन, मैं कुछ हद तक प्रमोशन को मैं मानता हूं, लेकिन दर्शकों को सिर्फ जानकारी देने तक ही हो।

इसलिए नहीं चली 'दिल्ली 6'

साल 2006 में आई फिल्म 'दिल्ली 6' के फ्लॉप होने क दर्द राकेश को अभी भी है। इस फिल्म के न चलने की वजह बताते हुए कहते हैं कि मैंने समाज के कड़वे सच को दिखाने की कोशिश की। ये फिल्म बनाना वाली फिल्मों में से थी। कमाने वाली फिल्मों में नहीं। हालांकि, 'दिल्ली 6' टीवी पर सबसे ज़्यादा देखी जाने वाली फिल्मों में से है।

अपनी अगली फिल्म के बारे में वो कहते हैं कि अब मैं बच्चों की फिल्म बनाना चाहता हूं। एक ऐसी फिल्म होगी, जो मुंबई की झुग्गी में रहने वालों बच्चों पर केंद्रित होगी। राकेश कहते हैं कि उन बच्चों पर बुनी एक विश्वास की कहानी होगी।

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