द जंगल बुक फिल्म की समीक्षा

नब्बे के दशक के बच्चों के बचपन को रुपहले परदे पर लेकर आए हैं जॉन फेवर्यू। हर इतवार मोगली से मुलाकात होती थी और सभी बच्चों को उसका इंतज़ार भी हुआ करता था। वो एनीमेटेड सीरीज़ थी, लेकिन जॉन ने इस बार जीता जागता मोगली को परदे पर उकेरा है। मोगली, बने हैं भारतीय मूल के अमेरीकी नील सेठी। अब बारी है इस फिल्म के र‍िव्यू की।

'द जंगल बुक' का हिंदी संस्करण
फिल्म -         द जंगल बुक
डायरेक्टर -  जॉन फेवर्यू
अभिनेता -   नील सेठी, ओम पुरी, इरफ़ान खान, नाना पाटेकर, 
                    शेफाली शाह, प्रियंका चोपड़ा और बग्स भार्गव।
रेटिंग -         4

इस सप्ताह रिलीज़ हुई फिल्म 'द जंगल बुक' ने 90 के दशक के बच्चों को लिए एक ट्रीट की तरह ही है। दूरदर्शन पर आाने वाले और इस 'जंगल बुक' में बस इतना ही फर्क है कि इस बार मोगली का कैरेक्टर एनीमेटेड नहीं बल्कि जीता जागता बच्चा है।

इस बार मोगली को परदे पर जीवंत किया है भारतीय मूल के अमेरीकी अभिनेता नील सेठी ने। अब मोगली है और जंगल है, तो अन्य जानवर भी होंगे ही। इस फिल्म में जानवरों के किरदारों को भी ग्राफिक्स की मदद से जबरदस्त तरीक से गढ़ा गया है।

जहां फिल्म के इंग्लिश संस्करण के लिए हॉलीवुड के बेन किंग्सले, बिल मुरे, इदि्रस एल्बा और स्कॉलेट जॉनसन सरीखे मशहूर कलाकारों ने अावाज़ दी है, वहीं हिंदी के लिए बॉलीवुड अभिनेता नाना पाटेकर, इरफान खान, आेम पुरी , बग्स भार्गव और प्रियंका चोपड़ा ने किरदारों को आवाज़ दी है।

कहानी

'द जंगल बुक' रुडयार्ड किपलिंग की कहानी पर आधारित है और इसे जॉन फेवर्यू ने डायरेक्ट किया है। यदि आपने एनिमेशन फिल्म 'जंगल बुक' देखी है तो आपको याद होगा कि जंगल में मोगली,  बघीरा को मिलता है और फिर भेड़ियों का एक झुंड मोगली को पाल-पोस कर बड़ा करता है। फिर एक दिन शेर खान यानी शेर की नज़र मोगली पर पड़ती है , जिसे मारकर वह इंसानो से अपना बदला लेना चाहता है। ऐसे में मोगली को बचाने के लिए भेड़िये, भालू, बघीरा सरीखे उसके सारे दोस्त शेर खान से भिड़ जाते हैं।

कमी बेशी

अब हम इस फिल्म की खूबियों और कमियों की बात करें, तो कुछ ज़्यादा है नहीं। जिन्होंने भी सीरियल देखा होगा, उन्हें फिल्म देखते समय ऐसा लगेगा कि जैसा सीरियल का एक एक एपीसोड निकल रहा है। जब मोगली, शेर खान से बचने के लिए इंसानी बस्ती की अोर जाता है, तब रास्ते में कई किरदार मिलते हैं। ठीक ऐसे जैसे सीरियल में मिले थे।

सीरियल का रिकॉल होना कभी भी बोझिल नहीं लगा। कई बार अंग्रेज़ी फिल्मों के हिंदी रूपांतरण बेहद अजीब होेते हैं। लेकिन इस फिल्म को देखने पर लगता है, जैसे इसे हिंदी में ही बनाया गया है। फिल्म के हर एक दृश्य से होते हुए एक अलग आभासी दुनिया में घुसते चले जाते हैं।

छाया आवाज़ का जादू

कम्प्यूटर ग्रफिक्स से रचे गए सारे किरदार आपको भावनात्मक सफर पर ले जाते हैं। इस सफर को किरदारों को मिली कलाकरों की आवाज़ और भी शानदार बना देती है। ओम पुरी की आवाज़ में जब बघीरा मोगली को लाड़ दिखाता है और सलाह देता है, तो उनकी आवाज़ में वो फिक्र नजर आती है।

शेफाली शाह की आवाज़ में जब रक्षा मोगली पर अपना ममत्व छिड़कती है, तो लगता है कितना खूबसूरत रिश्ता है। वहीं नाना पाटेकर की दबंग आवाज़ शेरखान के किरदार को रौबीला बना देता है।

इरफान खान की आवाज़ में मस्तीखोर रीछ बलू हर वक्त आपको गुदगुदाता रहता है और का बनी प्रियंका महज़ एक सीन में ही रहीं, लेकिन डराने में कामयाब रहीं।  यहां तक कि छोटे-छोटे किरदार भी कुछ पल के लिए आते हैं और आपको मुस्कान दे जाते है। फिल्म के कई एक्शन सीन आपकी कल्पना से परे हैं।

मिसाल के तौर पर जब वानर सेना मोगली को किंग लुई तक पहुंचाती है या फिर क्लाइमैक्स में मोगली और शेर खान की भिड़ंत....इसके अलावा वो सीक्वेंस जहां मोगली शेर खान से बचने के लिए भैंसों का सहारा लेता है।

हॉलीवुड के स्टूडियो में एक जंगल की रचना करना वाकई काबिल -ए - तारीफ है और साथ ही एक्शन सीक्वेंस भी आपको हैरान करने वाले हैं। आपको इस फिल्म की कहानी में भटकाव नहीं दिखेगा। असल कहानी ही परदे पर उतारने की कोशिश में कामयाब दिखते हैं जॉन।

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