विनोद खन्ना की वो 'आखिरी इच्छा'

विनोद खन्ना ने बतौर खलनायक अपने एक्टिंग करियर की शुरुआत की और फिर वो नायक बने। सफलता के शिखर पर पहुंच कर अचानक सन्यासी बन गए और फिर फिल्म इंडस्ट्री में वापसी करने के बाद राजनीति के पथ पर चल पड़े। एक ऐसा शख्स, जिसने जो चाहा, उसने वो पाया, लेकिन जाते-जाते उनकी एक ख्वाहिश फिर भी अधूरी रह गई। 

vinod khanna's last wish
हिन्दी सिनेमा के खूबसूरत चेहरों में से एक विनोद खन्ना ने अपने करियर की शुरुआत बतौर खलनायक की, लेकिन आगे चल कर नायक बन गए। एक समय ऐसा आया कि वो फिल्म इंडस्ट्री के हाइयेस्ट पेड एक्टर भी रहे। 
विनोद खन्ना सिर्फ खूबसूरती ही नहीं, बल्कि अपनी संजीदा अभिनय से भी दर्शकों के मन पर अमिट छाप छोड़ गए हैं। 6 अक्टूबर 1946 को पाकिस्तान के पेशावर में जन्में विनोद खन्ना का निधन 27 अप्रैल 2017 में हो गया था। 
विनोद खन्ना को बॉलीवुड में लाने का श्रेय सुनील दत्त को जाता है। दरअसल, सुनील दत्त अपने भाई को लॉन्च करने की योजना बना रहे थे। अपने होम प्रोडक्शन तले वो ‘मन का मीत’ की तैयारी कर रहे थे, तभी उनकी मुलाकात एक पार्टी में विनोद खन्ना से हुई। 

दरअसल, सुनील दत्त को अपनी फिल्म में खलनायक की भूमिका के लिए नया चेहरा चाहिए था। विनोद खन्ना की पर्सनॉलिटी देखकर सुनील ने उनको फिल्म में खलनायक बनने का प्रस्ताव दिया। विनोद ने भी तुरंत इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया। 

माता-पिता दोनों की मर्जी के खिलाफ जाकर विनोद खन्ना ने फिल्म ‘मन का मीत’ में काम किया। हालांकि, मां ने विनोद के सामने शर्त रखी थी कि यदि दो सालों में वो बॉलीवुड में सफल न हुए, तो फिर चुपचाप से पारिवारिक कारोबार संभालोगे। विनोद ने यह शर्त मानी और फिर अपना करियर शुरू कर दिया। साल 1968 में रिलीज़ हुई फिल्म ‘मन का मीत’ उनकी पहली फिल्म थी। 

फिल्म टिकट खिड़की पर ठंडी रही, लेकिन विनोद खन्ना को फिल्मों के ऑफर्स आने लगे। 'आन मिलो सजना', 'मेरा गांव मेरा देश', 'सच्चा झूठा' जैसी फिल्मों में खलनायक की भूमिकायें निभायीं। 

विनोद खन्ना को बतौर अभिनेता स्थापित गुलज़ार की फिल्म 'मेरे अपने' ने किया। गुलज़ार ने इस फिल्म से बतौर निर्देशक अपनी पारी की शुरुआत की। यह फिल्म छात्र राजनीति पर आधारित इस फिल्म में मीना कुमारी ने भी अहम भूमिका निभायी थी। 

विनोद खन्ना ने अपने करियर में तकरीबन 150 फिल्मों में काम किया। बतौर विलेन अपने करियर की शुरुआत करने वाले विनोद एक समय पर इंडस्ट्री के हाइयेस्ट पेड एक्टर थे और अपने करियर के इसी मुकाम पर एक दिन अचानक ही उन्होंने सन्यास लेने की घोषणा कर दी। साल 1982 में वो ओशो के शिष्य बन गए और उनके आश्रम में रहने लगे। तब उनको 'सेक्सी सन्यासी' का उपनाम भी मिला। 

बॉलीवुड में विनोद खन्ना ने दो पारियां खेली। पहली 'सन्यासी' बनने से पहले और दूसरी उसके बाद। पहली पारी साल 1968 -1982 तक रही। फिर दूसरी पारी साल1987-2015 तक। अपनी दूसरी पारी के दौरान ही विनोद खन्ना 'हाइयेस्ट पेड' एक्टर बने। 

खूबसूरत अभिनेताओं में शुमार विनोद खन्ना के खाते में कई सफल फिल्में हैं, जिनमें ‘मेरे अपने’, ‘परवरिश’, ‘हेरा फेरी’, ‘खून पसीना’, ‘कुर्बानी’, ‘दयावान’, ‘चांदनी’ उनमें से खास हैं। 

फिल्मों के अलावा अब राजनीति में भी प्रवेश करने का मन बनाया। साल 1997 में उन्होंने भारतीय जनता पार्टी की सदस्यता ली और गुरुदासपुर लोकसभा सीट से चुनाव लड़े और फिर जीत भी हासिल की। मृत्यु के समय भी विनोद खन्ना उस सीट से सांसद थे। राजग सरकार में वो केंद्रीय मंत्री भी रहे।

विनोद खन्ना साल 2015 में आई फिल्म ‘दिलवाले’ में नज़र आए। हालांकि, उनकी अंतिम फिल्म ‘एक थी रानी’ थी। यह फिल्म राजमाता विजय राजे सिंधिया पर बनी थी और इसे राज्यपाल मृदुला सिन्हा ने लिखा था।

विनोद खन्ना की आखिरी अधूरी इच्छा

विनोद खन्ना को ब्लैडर कैंसर हो गया था, जिसकी वजह से वो अपने अंतिम दिनों में वो बहुत कमजोर हो गए थे। हालांकि, अपनी बीमारी को सबसे छुपा कर रखा था, क्योंकि उनको अपनी बेटी की चिंता थी। विनोद अपने इलाज के लिए 6 साल से जर्मनी जा रहे थे। वहीं उनकी कुछ सर्जरी भी हुई थीं। 

मृत्यु से पहले विनोद खन्ना ने अपनी आखिरी इच्छा बतायी थी। दरअसल, विनोद पाकिस्तान के पेशावर स्थित अपने पुश्तैनी घर को देखना चाहते थे, लेकिन उनकी यह ख्वाहिश पूरी नहीं हो सकी। इस बात का खुलासा खैबर पख्तूनख्वाह प्रांत में सांस्कृतिक धरोहर परिषद के महासचिव शकील वहीदुल्ला ने किया था। 

शकील वहीदुल्ला ने साल 2014 में अपनी भारत यात्रा के दौरान खन्ना से मुलाकात की थी और इसी दौरान विनोद खन्ना ने उन्हें अपनी ख्वाहिश बतायी थी। 

शकील वहीदुल्ला ने कहा, 'अपने ऑटोग्राफ में विनोद खन्ना ने पेशावर के लोगों को शुभकमानाएं दी थी और अपने पुश्तैनी शहर की यात्रा करने की इच्छा जताई थी।'

वो आगे कहते हैं, 'विनोद खन्ना उस इलाके को देखने के लिए पेशावर जाना चाहते थे, जहां उनके माता-पिता और पूर्वज रहे थे। उन्होंने पाकिस्तान की यात्रा करने के लिए आग्रह किया था, लेकिन उनको इसमें सफलता नहीं मिल सकी।'

बता दें कि पेशावर में विनोद खन्ना का पुश्तैनी घर आज भी मौजूद है और ऑल पाकिस्तान वूमेंस एसोसिएशन द्वारा इसका इस्तेमाल किया जा रहा है।

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