तलत महमूद : मेरी याद में तुम न आंसू बहाना

तलत महमूद, हिन्दी फिल्म इंडस्ट्री के वो गायक, जिन्होंने अपनी अलहदा गायकी और ख़ासतौर पर गज़ल गायकी से आला मुकाम हासिल किया। वैसे तो बॉलीवुड में एक्टर बनने आए थे और उन्होंने तकरीबन 15 फिल्मों में अभिनय भी किया, लेकिन तलत महमूद ने बतौर गायक अपनी छाप छोड़ी। आज उनकी पुण्यतिथि पर उनसे जुड़ी ख़ास बातों पर नज़र डालते हैं। 

Remembring Talat Mahmood interesting stories
आज उस फनकार की बात करते हैं, जिसकी नाम है तलत महमूद। तलत महमूद, फिल्म इंडस्ट्री में एक अभिनेता के रूप में अपनी छाप छोड़ना चाहते थे, लेकिन किस्मत को कुछ और मंज़ूर था। लिहाजा वो एक उम्दा गायक के रूप में अपनी पहचान बना गए। 

तलत महमूद के गाने में जो मुलायमियत है, जो आपको कम ही आवाज़ो में मिलती है। दर्द भरे नगमे हों या फिर इश्क़ में डूबा आशिक, उनकी आवाज़ की 'लरज़िश' यानी 'कंपन' सुनने वाले को एक अलग ही दुनिया में ले जाती है। 

ख़ैर, तलत महमूद उस दौर में अपनी जगह बना रहे थे, जब हिन्दी फिल्म इंडस्ट्री में मोहम्मद रफी, किशोर कुमार और मुकेश जैसे गायकों की तूती बोल रही थी। तब के दौर में मन्ना डे और तलत महमूद जैसे गायकों को इंडस्ट्री ने साइड लाइन कर दिया था। फिर भी उनके हिस्से जो तराने आए, उन्हें तब से लेकर आज भी लोग गुनगुनाते और सुनते हैं। तलत महमूद को सुनने और सराहने वालों की तादाद आज भी काफी है। 

तलत महमूद की जीवन परिचय

24 फरवरी 1924 को लखनऊ के एक रुढ़िवादी मुस्लिम परिवार में जन्में तलत महमूद को बचपन से ही गाने का चस्का लग गया था। अब परिवार रूढ़िवादी था, लिहाजा गाना-बजाना बुरा माना जाता था और इस वजह से उनको प्रोत्साहन नहीं मिला। 

फिर भी अपना धुन तो अपना धुन ही होता है। वो अपने शौक को पूरा करते रहे। एक समय तो ऐसा आया, जब उनके सामने विकल्प रख दिया गया कि या तो वो परिवार को चुनें या फिर फिल्मों में काम करें। फिर क्या ज़िद्दी तलत ने परिवार को छोड़ फिल्मों को चुन लिया। तलत के इस चुनाव के चलते परिवार ने उनसे नाता ही तोड़ लिया। दस सालों तक परिवार तलत को नहीं अपनाया। हालांकि, जब उन्होंने अपना नाम कर लिया, तब परिवार ने तलत को अपना लिया। 

हालांकि, ऐसा नहीं था कि सब तलत की गायकी को नापसंद ही करते थे। परिवार में एक शख्स ऐसा था, जिसने तलत के भीतर के छिपे सिंगर को खूब हवा दी और वो थीं, उनकी बुआ। शायद बुआ का ही प्रोत्साहन थी कि 15 साल की उम्र में उनकी गायकी ने रफ्तार पकड़ ली। ऑल इंडिया रेडियो के लखनऊ स्टेशन पर वो मीर तकी मीर, दाग़ देहलवी, जिगर मुरादाबादी आदि की गज़लें गाने लगे। 

जल्द ही उन पर म्यूजिक कंपनी एचएमवी की नज़र पड़ी और उन्होंने तलत को लेकर साल 1941 में एक नॉन-फिल्मी अल्बम रिलीज़ किया, जिसका नाम था, 'सब दिन एक समान नहीं था'। यह अल्बम हिट हो गया और इसके लिए तलत को तब अपनी पहली रिकॉर्डिंग के लिए 6 रुपए मिले थे। 

तलत महमूद ने तपन कुमार

तलत महमूद ने कलकत्ता का रुख किया। यह वो दौर था, जब मुंबई से ज्यादा कोलकाता में सिनेमा का काम होता था। वहां थिएटर भी ज्यादा थे। अब यहां पहुंचे, तो कई बंगाली फिल्मों में गाना गाया, लेकिन तब उन्होंने अपना नाम बदल कर तपन कुमार कर लिया। तलत महमूद, तपन कुमार बन कर सिर्फ गाने ही नहीं गाये, बल्कि बंगाली फिल्मों में अभिनय भी किया। 

दरअसल, वो न सिर्फ अच्छा गाते थे, बल्कि अच्छे दिखते भी थे। इसलिए उनको फिल्मों में काम भी झट से मिल गया। लगातार तीन बंगाली फिल्मों में काम किया, जो सफल भी रहीं। इसके बाद तलत महमूद ने कोलकाता से बॉम्बे का रुख किया। 

अनिल बिस्वास ने कहा, 'मेरा तलत कहां है'

तलत महमूद का नॉन फिल्मी सॉन्ग ‘तस्वीर तेरा दिल मेरा बहला न सकेगी’ ने उनको पहचान दिलाई। फैयाज़ हाशमी के लिखे इस गाने को काफी पसंद किया गया। हालांकि, तलत के लिए सफर आसान नहीं था। उनकी अवाज़ की 'लरज़िश' यानी ‘कंपन’ की वजह से उन्हें बार-बार रिजेक्ट कर दिया जाता था। दिलचस्प बात यह है कि यही 'लरज़िश' उनकी यूएसपी बनी। 

ख़ैर, बार-बार के रिजेक्शन से उनका आत्मविश्वास डगमगाने लगा। इसी दौरान वो म्यूजिक डायरेक्टर अनिल बिस्वास के संपर्क में आए। अनिल तब फिल्म 'आरज़ू' के लिए संगीत तैयार कर रहे थे। तलत की आवाज़ पर अनिल इतने फिदा थे कि उन्होंने फिल्म के निर्देशक से फिल्म में एक और गाना जोड़ने के लिए कहा। निर्देशक तैयार हो गए और फिर मजरूह सुल्तानपुरी ने एक गाना लिखा। अब इस गाने के लिए तलत को बुलाया। 

अपनी स्वाभाविक आवाज़ को बदलकर जब तलत महमूद ने रिकॉर्डिंग शुरू की, तो अनिल बिस्वास ने उनको रोक कहा, 'मेरा तलत कहां है।' इस सवाल को सुनकर तलत महमूद अवाक रह गए। उन्होंने बड़े संकोच और अदब से कहा, 'मैं हू तलत हूं।'

अनिल बिस्वास बोले, 'नहीं, तुम मेरे तलत नहीं हो सकते। उस तलत की आवाज में तो एक लरज थी। तुम कोई और ही हो। जाओ, उसे ढूंढ कर लाओ।' 

इतना सुनने के बाद तलत महमूद की आंखों में आंसू आ गए। वह समझ चुके थे कि अनिल बिस्वास क्या कहना चाह रहे थे। रिकॉर्डिंग फिर से शुरू हुई। इस बार तलत की आवाज में वही लरज थी, जो बाद में उनकी पहचान बन गई। अनिल बिस्वास फिल्म इंडस्ट्री के नामवर संगीतकार थे और उनकी इस बात ने तलत महमूद का आत्मविश्वास लौटा दिया। 

मदन मोहन ने रफी के बजाय तलत महमूद गवाये गाने 

साल 1964 में 'जहांआरा' नाम की फिल्म आई थी। भरत भूषण और माला सिन्हा की मुख्य भूमिका वाली इस फिल्म का संगीत मदन मोहन ने तैयार किया था। इसके गाने मदन मोहन, तलत महमूद से गवाना चाहते थे, लेकिन प्रोड्यूसर को रफी पसंद। मदन मोहन ज़िद पर अड़े थे, लेकिन जब बात नहीं बनी, तो फिर मदन मोहन ने अपनी तरफ से तलत को फीस देकर गाने गवाए। रफी को जब इसकी जानकारी हुई, तो उन्हें बुरा भी लगा। तलत के इस फिल्म के लिए गाये गाने सुपरहिट रहे, जाहे वो ‘फिर वही ग़म’ हो, ‘तेरी आंख के आंसू ’ हो या ‘मैं तेरी नज़र का सुरूर हूं'।

तलत महमूद ने नौशाद के मुंह पर छोड़ा था सिगरेट का धुआं

तलत महमूद कई क़िस्से ऐसे हैं, जो सुनने पर काफी बचकाने लगेंगे, लेकिन उनका खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ा। एक ऐसा ही क़िस्सा है नौशाद के साथ का। संगीतकार नौशाद अपने सिंगर्स के रिकॉर्डिंग से पहले सिगरेट और शराब पीने के सख्त खिलाफ थे, जबकि तलत महमूद को सिगरेट पीने की आदत थी। फिल्म ‘बाबुल’ फिल्म के गाने ‘मेरा जीवनसाथी’ की रिकॉर्डिंग के ठीक पहले तलत महमूद ने नौशाद को चिढ़ाने के मकसद से जानबूझकर उनके सामने सिगरेट पी। तलत ने न सिर्फ सिगरेट पिया बल्कि उसका धुआं नौशाद मुंह पर छोड़ा। 

तलत महमूद की इस हरकत से नौशाद काफी चिढ़ गए। इतना चिढ़े कि भविष्य में काम न करने की कसम खा ली। यहीं नहीं फिल्म 'बैजू बावरा' से भी उनको निकाल दिया और वो सभी गाने रफी से गवाया। नौशाद ने कभी भी तलत को उनकी उस हरकत के लिए माफ नहीं किया। 

तलत महमूद अपने एक्टिंग करियर को मानते थे 'गलती' 

सिंगिक के अलावा तलत महमूद ने तलरीबन 15 हिंदी फिल्मों में एक्टिंग भी की। वह भी नूतन, माला सिन्हा, सुरैया जैसी बड़ी हीरोइंस के साथ उन्होंने स्क्रीन शेयर किया, लेकिन जब उन्हें लगा कि बात बन नहीं रही, तो उन्होंने एक्टिंग छोड़ दी।

फिर साल 1985 में एक इंटरव्यू के दौरान जब उनके एक्टिंग करियर को लेकर सवाल किया गया, तो उन्होंने कहा, 'जनाब, क्या आप उस गलती को भूल नहीं सकते? हम भी खतावार हैं। कौन है जिसकी ख्वाहिश नहीं है कि वो भी दिलीप कुमार बने?'

गीतकारों का डर

तलत महमूद में एक और खासियत थी। वह अपने गीतों के बोल को लेकर काफी सजग रहते थे। गीतों में सस्ते बोल से उनको खूब चिढ़ होती थी। हालात तो यह भी थे कि गीतकार इस डर में रहते थे कि मेरा लिखा तलत महमूद गाएंगे या नहीं। उनको पसंद आएगा या नहीं?...यदि आप तलत महमूद के गानों के दीवाने हैं, तो फिर आपने भी गौर किया होगा, उनके गीतों के बोल भी उतने ही शानदार हैं। 

फॉरेन में कंसर्ट करने वाले पहले इंडियन सिंगर 

तलत महमूद पहले भारतीय गायक थे, जिन्होंने साल 1956 में विदेश में (पूर्वी अफ्रीका में) कॉन्सर्ट किया था। इसके साथ ही लंदन के 'रॉयल अल्बर्ट हॉल', अमेरिका के 'मेडिसन स्क्वेयर गार्डन' और वेस्टइंडीज के 'जीन पियरे काम्प्लेक्स' जैसी प्रतिष्ठित जगहों पर अपना कार्यक्रम किया था।

तलत महमूद साल 1991 तक कॉन्सर्ट में गाते रहे। अपने जीवनकाल में लगभग 800 गाने गाए, जिनमें से कई सारे आज भी उतनी ही तन्मयता से सुने जाते हैं, जितना उनका क्रेज़ उनके रिलीज के वक्त था। 

स्टाइलिश ड्रेसेस का शौक

तलत महमूद को आइसक्रीम खाना काफी पसंद था और उन्हें स्टाइलिश कपड़े पहनने का भी शौक था। हमेशा सूटबूट में रहते थे। उनको दुनिया घूमने का भी शौक था। पचास के दशक में ही उन्होंने वर्ल्ड टूर का चलन शुरू किया था। 

किशोर कुमार ने कहा, 'चलो हम भाग चलें'

तलत महमूद की मन्ना डे से बहुत नज़दीकी दोस्ती थी। मन्ना डे अपनी आत्मकथा ‘मेमोरीज़ कम अलाइव’ में लिखते हैं, ‘एक बार मदन मोहन ने बंबई आई मलिका-ए-गज़ल बेगम अख़्तर के सम्मान में रात्रि भोज दिया, जिसमें बंबई की हर बड़ी संगीत हस्ती को बुलाया गया। जैसी कि उम्मीद थी भोज से पहले संगीत की एक महफिल हुई और सबसे पहले तलत महमूद से माइक के सामने आने के लिए कहा गया। जैसे ही उनकी पहली गज़ल ख़त्म हुई, इतनी तालियां बजीं कि मेरे और मोहम्मद रफी के बीचों-बीच बैठे हुए किशोर कुमार ने हम दोनों से फुसफुसा कर कहा,' चलिए हम दोनों चुपके से भाग चलें। तलत के फैलाए जादू के बाद अब हम लोगों को और कौन सुनेगा?'

सिर्फ 40 साल चल करियर

तलत महमूद का करियर सिर्फ 40 साल तक ही चला। आमतौर से गायक 40 साल की उम्र में अपने करियर की ‘पीक’ पर पहुंचते हैं, लेकिन इस उम्र तक आते-आते तलत की मांग कम हो चुकी थी। मानिक प्रेमचंद ने तलत महमूद की जीवनी, ‘द वेल्वेट वॉयस’के नाम से लिखी है। इसमें मानिक लिखते हैं, 'यह 'अर्ली बर्न आउट' का केस था। चालीस साल की उम्र में कोई इस तरह अपनी दुकान नहीं बंद करता।'

दरअसल, इसके पीछे भी एक कारण है। कहा जाता है कि अपने करियर की उफान के दिनों में तलत अक्सर तीन-चार महीनों के लिए वर्ल्ड टूर पर चले जाते थे, जिसका बुरा असल उनके करियर पर पड़ा। वहीं भारतीय फिल्मों में संगीत का स्वरूप बदल रहा था। शोर शराबे वाला संगीत हावी होने लगा था। गानों में शब्दों का महत्व कम होता जा रहा था और तलत महमूद इस पूरे माहौल में खुद को 'मिसफिट' पा रहे थे।'

मानिक ने आगे लिखा है, 'तलत को यह बात भी काफी बुरी लगती थी कि कई गाने उनसे गवाने के बाद संगीतकार उसी गाने को किसी और गायक से गवा लेते थे। इस बात से वो अंदर ही अंदर घुटते जा रहे थे।'

‘जहांआरा’ उनके करियर की आखिरी बड़ी फिल्म थी। बेहतरीन गानों के बावजूद ये फिल्म बुरी तरह से फ्लॉप हुई थी और तीन दिनों के भीतर ये थियटरों से उतर गई थी। इस फिल्म ने कई लोगों के दिल तोड़े थे, जिसमें तलत का दिल भी शामिल था।

दुनिया को कह गए 'अलविदा'

9 मई, 1998 को पार्किंसन बीमारी से जूझते हुए तलत महमूद ने इस दुनिया को अलविदा कह गए। अपने जीवन के आखिरी दिनों में वो किसी से बात तक करने की स्थिति में नहीं थे। उनकी बायोग्राफी लिखने वाले मानिक प्रेमचंद ने एक इंटरव्यू में कहा था, 'मेरे जीवन की सबसे दुखदायी याद है तलत साहब से उनके आखिरी दिनों में मिलना। पूरी दुनिया को अपनी आवाज़ से मदहोश कर देने वाला शख्स एक-एक शब्द बोलने के लिए जद्दोजहद कर रहा था। मेरा कलेजा बैठा जाता था कि काश उनकी तकलीफ मुझे लग जाती।'

तलत महमूद के सदाबहार तराने 

जाएं तो जाएं कहां
फिल्म ‘टैक्सी ड्राईवर’ का यह गाना तो जैसे उनकी पहचान बन कर रह गया है। सचिन देव बर्मन के संगीत से सजा ये गीत साहिर लुधियानवी की कलम का करिश्मा था। 

दिल ए नादां तुझे हुआ क्या है
ग़ालिब की इस ग़ज़ल को न जाने कितने फनकारों ने अपनी आवाज़ दी है, लेकिन जो सुकून तलत की आवाज़ में इसे सुनने में आता है, वो किसी और में नहीं है। 

हमसे आया न गया
साल 1957 की फिल्म ‘देख कबीरा रोया’ का ये गीत प्रेम के शिकायती लहज़े बेहतरीन मुज़ाहिरा है। राजेंद्र कृष्ण के बोल और मदन मोहन का संगीत। बेहतरीन शब्दों के साथ तलत पूरा न्याय करते हैं।

जलते हैं जिसके लिए
फिल्म ‘सुजाता’फिल्म का ये गीत सॉफ्ट रोमांटिक गीतों की श्रृंखला में एक महत्वपूर्ण गीत है। तलत की गायकी ने इस गीत के हर एक शब्द को ज़िंदा कर दिया है। 

इतना न तू मुझसे प्यार बढ़ा
तलत महमूद ने सिर्फ सॉफ्ट रोमांटिक नंबर्स ही नहीं गाए बल्कि कुछेक हल्के-फुल्के गीतों को भी अपनी आवाज़ दी, जो बेइंतेहा पसंद किए गए। साल 1961 में आई फिल्म ‘छाया’ का 'इतना न तू मुझसे प्यार बढ़ा' इसका बेहतरीन उदाहरण है। 

ऐ मेरे दिल कहीं और चल
साल 1952 में आई फिल्म ‘दाग़’ का यह गाना, निराशा के भंवर में गोते लगाते लोगों का सहारा है। 

तलत महमूद भारतीय संगीत की दुनिया का वो 'सितारा' है, जो हमेशा रोशन रहेगा और इस पर सभी को गर्व होगा।

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