पद्मश्री टॉम ऑल्टर : अंग्रेज़ लगने वाला कलाकार, जो था पक्का हिन्दुस्तानी

अभिनेता टॉम ऑल्टर को कोई सिनेप्रेमी न पहचान पाए, यह संभव ही नहीं। अधिकतर फिल्मों में अंग्रेज़ अफसर का किरदार निभाने वाले टॉम को खुद का गोरा होना अखरता था, क्योंकि इसकी वजह से उन्हें एक ही तरह की भूमिकाएं करनी पड़ती थीं। इस बात का जिक्र उन्होंने एक इंटरव्यू में किया। टॉम भले ही दिखते अंग्रेज़ हों, लेकिन वो हम सबसे ज्यादा हिन्दुस्तानी थे। हिन्दी के साथ उर्दू ज़बान पर उनकी पकड़ के लोग कायल रहे हैं। आज उनकी सालगिरह है, तो चलिए उनके जीवन के सफर पर एक नज़र डालते हैं। 

Padamshri Tom Alter special story biography
हिन्दी फिल्मों के रसिक टॉम ऑल्टर से अनजान नहीं है। अधिकतर बॉलीवुड फिल्मों में अंग्रेज़ अफसर की भूमिका निभाने वाले टॉम ऑल्टर ने लगभग 300 से ज्यादा फिल्मों और धारावाहिकों में काम किया। 

हालांकि, उनको अपना गोरा रंग काफी अखरता है। एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि इस रंग की वजह से उन्हें सिर्फ एक तरह के ही किरदार मिलते हैं। इससे अपनी क्षमताओं का प्रदर्शन नहीं कर पाता हूं। 

इसके बावजूद भी टॉम ऑल्टर ने अलग-अलग भूमिकाएं निभाई हैं। जहां धारावाहिक 'ज़बान संभाल के' में वो एक ब्रिटिश की भूमिका में दिखे, जो भारत में रह कर हिन्दी सीखना चाहता था। वहीं धारावाहिक 'जुनून' में केशव कलसी के किरदार में दिखाई दिए, जो एक पंजाबी था। 

राज कपूर की फिल्म 'राम तेरी गंगा मैली हो गई' में करम सिंह की भूमिका निभाई थी, जो गंगा यानी मंदाकिनी का बड़ा भाई रहता है। थिएटर प्ले में 'मौलाना अबुल कलाम आज़ाद' का किरदार निभाया था। इनकी अंग्रेज़ी के साथ उर्दू और हिन्दी पर गजब की थी। 

एक्टिंग ही नहीं स्पोर्ट्स में भी उनकी खासी दिलचस्पी रही है। बतौर स्पोर्ट्स जर्नलिस्ट भी उन्होंने काफी काम किया है। टॉम को क्रिकेट देखने, खेलने और इसके बारे में लिखने का बहुत शौक था। सचिन तेंदुलकर का सबसे पहला वीडियो इंटरव्यू इन्होंने ही लिया था। तारीख थी 19 जनवरी 1989। सचिन तब 15 साल के थे।

राजेश खन्ना की फिल्म ने लगाया एक्टिंग का चस्खा 

टॉम अल्टर का जन्म 22 जून 1950 को उत्तराखंड के मसूरी में हुआ। इनके दादा अपने परिवार के साथ साल 1916 में अमेरिका से भारत के मद्रास पहुंचे। यहां से वो लाहौर में जा बसे। वहीं इनके पिता का जन्म हुआ। आगे जब भारत का विभाजन हुआ, तो इनके दादा-दादी पाकिस्तान में ही रहे, लेकिन पिता ने भारत में रहने का फैसला लिया। देश के साथ परिवार भी बंट गया। 

इनके पिता पहले उत्तर प्रदेश के इलाहबाद में रहे। फिर सहारनपुर और जबलपुर में कुछ दिन रहे, लेकिन आखिरकार उन्होंने मसूरी में बसने का फैसला ले लिया। मसूरी में ही टॉम ऑल्टर का जन्म हुआ। शुरुआती पढ़ाई-लिखाई मसूरी में ही हुई। इसी दौरान हिन्दी और उर्दू को पढ़ने-लिखने का मौका मिला। अंग्रेज़ी के साथ हिन्दी और उर्दू में भी महारत हासिल कर ली। 

टॉम ने मसूरी के वुड स्टॉक स्कूल से इंटर की डिग्री हासिल की और फिर हायर स्टडीज़ के लिए अमेरिका के येल यूनिवर्सिटी चले गए। अपने इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि वहां की पढ़ाई काफी सख्त थी। दिन के आठ-नौ घंटे पढ़ना पड़ता था, जो उनके बस का नहीं था। एक साल बाद ही भारत वापस लौट आए थे। 

टॉम ने आगे बताया कि अमेरिका से वापसी के बाद पिता ने टीचर की नौकरी पर रखवा दिया। जगाधरी, हरियाणा के सेंट थॉमस स्कूल में महज 19 साल की उम्र में बिना ट्रेनिंग के ही टीचर बन गए। चाचा वुडस्टॉक स्कूल में प्रिंसिपल थे। कुछ दिन वहां भी काम किया। फिर वापस अमेरिका गए। वहां अस्पताल में काम किया। फिर चाचा ने बुला लिया। ढाई -तीन साल तक ऐसे ही नौकरियों का बदलने का सिलसिला चलता रहा। 

साल 1970 में ही जगाधरी में राजेश खन्ना की फिल्म 'अराधना' देखी। फिल्म अच्छी लगी और तभी एक्टर बनने का खयाल इनके मन में उठने लगा। दो साल बाद भारतीय फिल्म और टेलिविज़न संस्थान यानी एफटीटीआई पुणे जॉइन किया। साल 1972 से लेकर 1974 तक वहीं रहे। यहां रोशन तनेजा इनके गुरु थे। 

एफटीटीआई को लेकर टॉम ने कहा था, 'मैं इस एक्टिंग इस्टिट्यूट न जाता तो आज मुझे कोई न जानता।' यहां नसीरुद्दीन शाह और ओम पुरी इनके जूनियर थे और शबाना आज़मी इनकी सीनियर। दो साल तक एफटीटीआई की क्रिकेट टीम के कैप्टन रहे। 

वहीं 1974 में टॉम ऑल्टर एफटीआईआई से गोल्ड मेडलिस्ट रहे। यहां से कोर्स पूरा करने के बाद उसी साल मुंबई का रुख किया। तकरीबन दो साल बाद यानी साल 1976 में आई फिल्म 'चरस' से उन्होंने अपने एक्टिंग करियर की शुरुआत की। इस फिल्म में धर्मेंद्र के साथ हेमा मालिनी ने मुख्य भूमिका निभाई थी। रामानंद सागर की इस फिल्म में टॉम एक कस्टम ऑफिसर की भूमिका में थे। 

फिल्म 'चरस' में छोटी भूमिका थी, लेकिन इन्हें पसंद किय गया। इसके बाद साल 1977 में आई फिल्म 'शतरंज के खिलाड़ी' से उनको बड़ी सफलता मिली। इस फिल्म में उन्होंने एक अंग्रेज़ अधिकारी का किरदार निभाया था।

वहीं बॉलीवुड में 'क्रांति', 'देश परदेश', 'सल्तनत', 'आशिकी', 'राम तेरी गंगा मैली', 'गुमराह' समेत तकरीबन 300 फिल्मों में अपनी अदाकारी का जौहर दिखाया। हिन्दी के साथ टॉम ने कुछ दक्षिण फिल्मों में भी अभिनय किया। 

फिल्मों के अलावा थिएटर में भी रहे एक्टिव

साल 1977 में टॉम अपने एफटीआईआई के जूनियर और दोस्त नसीरुद्दीन शाह व बेंजामिन गिलानी के साथ मिलकर 'मोटली' नाम का थियेटर ग्रुप शुरू किया। उर्दू पर जबरदस्त पकड़ होने की वजह से उन्होंने कुछ बेसमिसाल किरदारों का मंचन भी किया। 

गीतकार साहिर लुधियानवी पर आधारित नाटक में साहिर का किरदार निभाया, तो वहीं मशहूर शायर मिर्जा गालिब की भूमिका का मंचन भी किया। टॉम ने मौलाना आज़ाद के किरदार को भी निभाया। इनके द्वारा निबाए गए इन किरदारों को दर्शकों ने काफी पसंद किया। 

छोटे पर्दे पर भी टॉम ने किया काम

फिल्मों के अलावा टॉम ने छोटे पर्दे पर भी काम किया। उन धारावाहिक में 'भारत एक खोज', 'जुनून', 'ज़बान सभांल के', 'जुगलबंदी' आदि शामिल हैं। अभिनय के साथ ही वे एक लेखक भी रहे। टॉम ने कई नाटक व सीरियल की स्क्रिप्ट भी लिखी, जिसमें सफलता भी मिलीं।

सचिन का इंटरव्यू लेने वाले पहले स्पोर्ट्स जर्नलिस्ट थे टॉम 

अभिनय की दुनिया के साथ खेल की दुनिया से भी टॉम बराबर जु़ड़े रहे। वो अपने निवास स्थान मसूरी में अपने दोस्तों के साथ क्रिकेट, फुटबॉल आदि खेल खेला करते थे। खेलों में सबसे ज्यादा रूचि क्रिकेट से रही। वे मुंबई से मसूरी पहुंचने के बाद अपने दोस्तों को इकठ्ठा करके मसूरी के लोकल टूर्नामेंटों में क्रिकेट खेलने आया करते थे। इन दोस्तों में बॉलीवुड सुपरस्टार नसीरुद्दीन शाह भी शामिल हैं।

क्रिकेट से दिलचस्पी रखने की वजह से टॉम ने कुछ दिनों तक खेल पत्रकारिता में भी अपना हाथ अजमाया। टॉम ही वो पहले पत्रकार हैं, जिन्होंने सचिन तेंदुलकर का पहला वीडियो इंटरव्यू किया था। तब सचिन सिर्फ पंद्रह साल के थे। 

अभिनेता के रूप में उन्होंने भारत के साथ कुछ विदेशी फिल्मों में भी कम किया। उन्होंने कुछ किताबें भी लिखी हैं। टॉम के महत्वपूर्ण योगदान को देखते हुए भारत सरकार ने साल 2008 में पद्मश्री से पुरस्कृत किया था। 

दमदार अभिनेता से लेकर एक लेखक रहे टॉम अल्टर 29 सितंबर 2017 को मुंबई में इस दुनिया को अलविदा कह दिया, उनकी मौत स्किन कैंसर के कारण हुई थी।

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