Mughal-E-Azam: तीन भाषाओं में बनने वाली पहली बॉलीवुड फिल्म

'मुग़ल-ए-आज़म' पहली बॉलीवुड फिल्म थी, जो तीन भाषाओं में बनी थी। वहीं यह पहली ब्लैक एंड वाइट फिल्म है, जिसे डिजिटली कलर किया गया था। साल 2009 में इसे कलर प्रिंट के साथ फिर से रिलीज़ किया गया था। के आसिफ के निर्देशन में बनी पृथ्वीराज कपूर, दिलीप कुमार, मधुबाला सरीखे कलाकारों से सजी इस फिल्म के जुड़ी कुछ दिलचस्प बातें पढ़िए, इस रिपोर्ट में। 

'mughal-e-azam' Intresting anecdotes
आजकल बॉलीवुड की कई फिल्मों को हिन्दी के अलावा और भी भाषाओं में रिलीज़ किया जाता था, लेकिन कुछ दशक पहले यह काफी कम देखने को मिलता था, लेकिन क्या आप जानते हैं कि फिल्मों को कई भाषाओं में रिलीज़ करने का ट्रेंड किस फिल्म ने शुरू किया? 

जी हां, सही समझे। के आसिफ की 'मुग़ल-ए-आज़म' ने इस ट्रेंड को शुरू किया है। साठ साल पहले रिलीज़ हुई इस फिल्म को ना सिर्फ हिन्दी में बल्कि तमिल और अंग्रेजी तीनों भाषाओं में भी शूट किया गया था।

फिल्म 'मुगल-ए-आज़म' हिन्दी में रिलीज़ हुई थी, लेकिन इसे तमिल और अंग्रेजी में भी शूट किया गया था। कलाकारों को तमिल तो आती नहीं थी। इसलिए लिप-सिंक का सहारा लिया गया। हिन्दी में रिलीज़ हुई फिल्म ने रिकॉर्ड तोड़ दिए, तो वहीं तमिल में रिलीज़ हुई फिल्म का खास कामयाबी नहीं मिली। लिहाजा अंग्रेजी में फिल्म न रिलीज़ करने का फैसला लिया गया। 

जानकारी के लिए बता दें कि डिजिटली रंगीन होने वाली पहली ब्लैक एंड वाइट हिन्दी फिल्म थी। इसके अलावा ये किसी भी भाषा में बनने वाली पहली फिल्म थी, जिसे दोबारा रिलीज़ किया गया था। साल 2009 में 'मुग़ल-ए-आज़म' को कलर प्रिंट के साथ फिर से रिलीज़ किया गया था।

चंद्रमोहन बनने वाले थे अकबर

के आसिफ अपनी फिल्म में 'अकबर' के रूप में अभिनेता चंद्रमोहन को लेना चाहते थे, क्योंकि चंद्रमोहन की आंखें उन्हें काफी पसंद थीं। हालांकि, चंद्रमोहन उनके साथ काम करने के लिए तैयार नहीं थे। बाद में के आसिफ ने यह भी कहा कि मैं आपके 'हां' का इंतज़ार करूंगा, लेकिन दुर्भाग्य से चंद्रमोहन का एक्सीडेंट हो गया और कुछ सालों बाद उनका निधन। इसके बाद के आसिफ ने पृथ्वीराज कपूर में अपने 'अकबर' को तलाश लिया। 

तपती रेत में चले थे के आसिफ

अपने क्राफ्ट के साथ कास्ट एंड क्रू को लेकर भी के आसिफ काफी संजीदा थे। मामला यह है कि फिल्म के एक सीन में पृथ्वीराज कपूर को रेत पर नंगे पांव चलना था। उस सीन की शूटिंग राजस्थान में हो रही थी, जहां की रेत तप रही थी। उस सीन को करने में पृथ्वीराज कपूर के पांव पर छाले पड़ गए थे। जब ये बात आसिफ को पता चली, तो उन्होंने भी अपने जूते उतार दिए और नंगे पांव गर्म रेत पर कैमरे के पीछे चलने लगे। 

आधी कलर और आधी ब्लैक एंड वाइट थी 'मुग़ल-ए-आज़म'

सोहराब मोदी की साल 1953 में आई फिल्म ‘झांसी की रानी' भारतीय सिनेमा की पहली रंगीन फिल्म थी, लेकिन साल 1955 आते-आते रंगीन फिल्में बनने लगी थीं। इसी को देखते हुए आसिफ ने भी ‘मुग़ल-ए-आज़म’ के गाने ‘प्यार किया तो डरना क्या’ सहित कुछ हिस्सों की शूटिंग टेक्निकलर में की, जो उन्हें काफी पसंद आई। इसके बाद उन्होंने पूरी फिल्म को टेक्निकलर में दोबारा शूट करने का फैसला किया, लेकिन पहले ही फिल्म की शूटिंग में 10 साल से ज्यादा निकल चुके थे और बजट भी कई गुना बढ़ गया था। इन्हीं चीज़ों से परेशान होकर फिल्म के निर्माता और वितरकों ने दोबारा शूटिंग करने की योजना को ठंडे बस्ते में डाल दिया। 14 साल में बनी फिल्म आधा कलर और आधा ब्लैक एंड वाइट में रिलीज़ हुई।

दिलीप कुमार ने 10 साल बाद देखी थी 'मुग़ल-ए-आज़म'

दिलीप कुमार ने फिल्म 'मुग़ल-ए-आज़म' दस साल बाद देखी। दरअसल, मामला यह है कि इस फिल्म की मेकिंग के दौरान इससे जुड़े लोगों की ज़िंदगी में काफी उथल-पुथल मचा हुआ था। जहां एक तरफ दिलीप कुमार और मधुबाला का 9 साल पुराना रिश्ता खत्म हो चुका था। दोनों कलाकरों ने पूरी फिल्म की शूटिंग के दौरान एक दूसरे से बात नहीं की। वही दूसरी तरफ फिल्म के निर्देशक के आसिफ ने दिलीप कुमार की बहन अख्तर बेगम से शादी की थी। एक बार अख्तर बेगम और आसिफ में झगड़ा हुआ। दिलीप बचाव करने पहुंचे, तो आसिफ ने कह दिया कि अपना स्टारडम मेरे घर से बाहर रखो। दिलीप कुमार इतना नाराज हुए कि फिल्म के प्रीमियर तक में नहीं गए थे। उन्होंने ये फिल्म भी 10 साल बाद देखी थी।

जयपुर रेजीमेंट के सैनिकों पर फिल्माया गया था 'मुग़ल-ए-आज़म' का वॉर सीक्वेंस

इस फिल्म में के आसिफ ने जिस तरह से शाही परिवार, युद्ध के सीन, एक्शन, गीतों और डांस आदि को पर्दे पर उतारा था, वो लाजवाब था। हालांकि, इससे पहले भी इस तरह की चीजें दर्शक देख चुके थे, लेकिन के आसिफ ने इन सभी को एक नया आयाम दिया था। जानकर आप हैरान हो जाएंगे कि 60 साल पहले इस फिल्म के 7 मिनट के युद्ध सीन को फिल्माने के लिए राजस्थान में दो महीनों तक शूटिंग हुई। आउटडोर युद्ध सीन को फिल्माने के लिए 16 कैमरे लगाए गए थे। ऐसा बताया जाता है कि भारतीय सेना की जयपुर कवलरी की 56वीं रेजिमेंट के करीब 8 हजार सैनिकों ने इस सीन में हिस्सा लिया था। इस फिल्म में भारतीय इतिहास में पहली बार सेना के हाथी, घोड़ों और सैनिकों का इस्तेमाल किया गया था।

इसके लिए आसिफ ने तत्कालीन भारतीय रक्षामंत्री कृष्णा मेनन से बाकायदा इज़ाज़त ली थी। इस सीन की शूटिंग के दौरान रक्षामंत्री खुद मौजूद थे। बताया जाता है कि इस सीन की शूटिंग में बेहद मुश्किलों का सामना करना पड़ा था, क्योंकि हाथी बमों की आवाज़ सुनकर इधर-उधर भागने लगते थे और उनको नियंत्रित करना मुश्किल हो जाता था। इसलिए कुछ हाथियों को, जो सेना से नहीं थे, अंधा कर दिया गया था।

असली सोने की थी कृष्ण की मूर्ति

फिल्म के एक सीन में कृष्ण की मूर्ति असली सोने की थी, रानी जोधाभाई ने जो गहने पहने थे, वे उस दौर में राजस्थानी शैली में डिजाइन किए गए थे। 60 साल पहले इस फिल्म को बनाने में 1.5 करोड़ रुपये लगे थे।

शीश महल की शूटिंग और दिक्कतें

इस फिल्म की शूटिंग के लिए बड़े भव्य सेट बनवाए गए थे, लेकिन फिल्म के कुछ खास हिस्सों की शूटिंग करने के लिए लाहौर के शीशमहल का डुप्लीकेट सेट बनवाया गया, जिसमें शीशे का उपयोग किया गया था। सेट पर लाइटिंग करने में दिक्कत होने लगी, क्योंकि शीशे से लाइट रिफ्लेक्ट हो रही थी। फिल्म से जुड़े काम के लिए ब्रिटिश डायरेक्टर डेविड लीन को भी बुलाया गया था, जिनका कहना था कि ऐसे सेट पर शूटिंग करना संभव नहीं है। के आसिफ साहब ने अपने क्रू के साथ मिलकर सभी शीशों पर मोम की एक पतली परत चढ़ा दी, जिससे रिफ्लेक्शन की समस्या दूर हो गई और शूटिंग शुरू हुई, लेकिन इससे विजुअल्स धुंधले होने लगे। इसके बाद सिनेमैटोग्राफर आर डी माथुर ने शीशों पर झीने कपड़े डालकर शूटिंग शुरू कर दी। शीशमहल को 500 ट्रकों की हेडलाइट और 100 रिफलेक्टर्स से रोशन किया गया था।

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