'फर्स्ट लेडी ऑफ इंडियन स्क्रीन' देविका रानी को सालगिरह मुबारक़

आज हिन्दी सिने जगत यानी बॉलीवुड की 'फर्स्ट लेडी ऑफ इंडियन स्क्रीन' देविका रानी का जन्मदिन है। अपने दस साल के करियर में सिर्फ पंद्रह फिल्में करने वाली देविका रानी की जोड़ी अशोक कुमार के साथ खूब जमी थी। देविका रानी को पहली 'ड्रीम गर्ल' भी कहा जाता है। हिन्दी सिनेमा आगे बढ़ता जा रहा है, लेकिन पीछे छूट चुके कलाकारों को कोई याद नहीं करता है, लेकिन वो इस हिन्दी सिने जगत की नींव रहे हैं, तो फिर चलिए आप और हम उनको याद कर लेते हैं।

first lady of indian screen devika rani
अभिनेत्री देविका रानी का जन्म 30 मार्च, 1908 को आंध्रप्रदेश में हुआ था, उनके पिता कर्नल एमएन चौधरी को भारत का प्रधम सर्जन जनरल थे, जबकि दादा जी ज़मींदार थे और उनकी दादी प्रसिद्ध कवि रविंद्रनाथ टैगौर की बहन थीं। देविका ने सिर्फ दस साल के अभिनय करियर में लगभग 15 फिल्मों में काम किया, लेकिन वो हिन्दी सिनेमा के रजत पटल पर अमर हो गईं।

देविका रानी जब नौ साल की हुईं, तो उनको एजुकेशन के लिए इंग्लैंड भेज दिया गया। पढ़ाई पूरी करने के बाद जब देविका रानी ने एक्टिंग में करियर बनाने की बात की, तो घर वाले नाराज़ हो गए, क्योंकि संभ्रात परिवार की लड़कियों को 'नौटंकियों' यानी फिल्मों में काम करने की इजाजत नहीं थी। 

घरवालों में एक्टिंग करन की मनाही की, लेकिन पढ़ाई के लिए कोई रोक-टोक नहीं था, लिहाजा देविका इंग्लैंड में ही रूक गईं और वहां उन्होंने रॉयल अकादमी ऑफ ड्रामेटिक आर्ट में डिग्री ली। इसके अलावा उन्होंने आर्किटेक्चर में भी डिप्लोमा हासिल किया। 

अपनी पढ़ाई के दौरान की देविका की मुलाकात बुस्र बुल्फ नामक फिल्म निर्माता से हुई, जो उनकी आर्किटेक्चर आर्ट से काफी इंप्रेस था और उन्होंने अपनी कंपनी में बतौर डिजाइनर नियुक्त कर लिया।

इसी दौरान देविका की मुलाकात हिमांशु राय से हुई, जो मैथ्यू अर्नाल्ड की कविता 'लाइट ऑफ एशिया' पर बेस्ड इसी नाम से एक फिल्म बनाकर अपनी पहचान बना चुके थे। देविका रानी को देखकर हिमांशु राय उनकी खूबसूरती पर फिदा हो गए और उन्होंने देविका रानी को अपनी फिल्म 'कर्म' में काम करने का ऑफर दिया, जिसे देविका रानी ने झट से मान लिया। 

यह वो समय था, जब मूक फिल्मों का दौर जा रहा था और सिल्वर स्क्रीन पर किरदार बोलते नज़र आने लगे थे। तब यानी साल 1933 में हिमांशु राय ने 'कर्म' नाम से फिल्म का निर्माण किया, जिसमें वो खुद नायक और नायिका के रूप में देविका रानी थी। इसी फिल्म में देविका रानी ने हिमांशु राय के साथ लगभग 4 मिनट तक लिप-टू-लिप 'किस' सीन हुआ था। तब इस सीन ने काफी हंगामा मचाया था। जहां देविका रानी को आलोचना झेलनी पड़ी, वहीं फिल्म को बैन करने की मांग खड़ी हो गई थी। 

हालांकि, एक तबका ऐसा भी था, जो इस अभिनेत्री की फर्राटेदार अंग्रेजी में बोले गए डायलॉग्स से प्रभावित हो गया था। उसके व्यक्तित्व को देखर मुग्ध हो गए थे कि देविका रानी को गिनती बोलती फिल्मों की श्रेष्ठ नायिका कहा जाने लगा था। हिमांशु तो यूं भी देविका रानी पर फिदा थे, फिल्म के बाद शादी के लिए कहा, तो देविका रानी, हिमांशु राय के इस प्रस्ताव को भी झट से मान गईं। 

मुंबई आने के बाद हिमांशु राय और देविका रानी ने मिलकर बॉम्बे टॉकीज की स्थापना की। साल 1935 में इस बैनर के तले पहली फिल्म बनी, नाम था 'जवानी की हवा'। इस फिल्म में देविका के साथ नजमुल हसन मुख्य भूमिका में थे। देविका रानी ने बॉम्बे टॉकीज के बैनर तले बनी कई फिल्मों में अभिनय किया। 

'अछूत कन्या' से बनीं 'ड्रीम गर्ल'

साल 1936 में आई फिल्म 'अछूत कन्या' देविका रानी के करियर को एक नए आयाम पर लेकर गई। फिल्म में अशोक कुमार ने एक ब्राह्मण युवक का किरदार निभाया था, तो वहीं देविका रानी अछूत लड़की बनी थीं। अब ब्राह्मण युवक को अछूत लड़की से प्यार हो जाता है। सामाजिक पृष्ठभूमि पर बनी इस फिल्म को काफी पसंद किया गया था और इस फिल्म के बाद देविका रानी को फिल्म इंडस्ट्री ने 'ड्रीम गर्ल' कहा जाने लगा। वहीं इसी फिल्म के बाद देविका रानी को 'फर्स्ट लेडी ऑफ इंडियन स्क्रीन' का भी खिताब मिला। 

अशोक कुमार के साथ हिट थी जोड़ी

सिल्वर स्क्रीन पर देविका रानी की जोड़ी अशोक कुमार के साथ सबसे ज्यादा जमी और पसंद की गई। देविका रानी ने पंद्रह फिल्मों में से आठ फिल्मों में अशोक कुमार के साथ काम किया, जो टिकट खिड़की पर सफल भी रहीं। इन फिल्मों में 'अछूत कन्या', 'जीवन नैया', 'इज्जत', 'सावित्री', 'निर्मला' आदि फिल्में हैं। वहीं देविका रानी ने किशोर शाहू और जयराज सरीखे अभिनेताओं के साथ भी काम किया था। 

पति की अचानक मृत्यु के बाद बनीं प्रोड्यूसर

साल 1940 में हिमांशु राय की आकस्मिक मौत के बाद देविका रानी ने बांबे टॉकीज को अपने सहयोगियो की मदद से चलाया। इस दौरान उन्होंने 'पुनर्मिलन', 'बंधन', 'कंगन', 'झूला', 'बसंत' और 'किस्मत' सरीखी फिल्मों का निर्माण किया। फिल्म 'किस्मत' बाम्बे टॉकीज के बैनर तले बनी फिल्मों में सबसे सफल फिल्मों में एक रही। इस फिल्म ने बॉक्स आफिस के सारे रिकार्ड तोड़ते हुये कोलकाता के एक सिनेमा हॉल में लगभग चार वर्ष तक लगातार चलने का रिकार्ड कायम किया जो काफी समय तक टिका रहा।

प्रोडक्शन में हाथ आजमाने के बाद देविका रानी ने खुद को साल 1945 में बॉम्बे टॉकीज़ से अलग कर लिया। देविका रानी का कहना था कि महज पैसा कमाना बाम्बे टॉकीज का एकमात्र लक्ष्य नहीं है। हिमांशु राय ने उन्हें सिखाया था कि फिल्म व्यावसायी तौर पर सफल होनी चाहिये, लेकिन यह सफलता कलात्मक मूल्यों की बलि देकर नहीं हासिल की जानी चाहिये। देविका रानी को जब यह महसूस हुआ कि जब वह इन मूल्यों की रक्षा नहीं कर पा रही है , तो उन्होंने बांबे टॉकीज को अलविदा कह दिया।

रूसी चित्रकार स्वेतोस्लाब रोरिक से शादी

हिमांशु राय के निधन के बाद प्रोडक्शन में जुट जाना, लेकिन फिर बॉम्बे टाॉकीज़ से खुद को अलग कर देविका रानी काफी अकेलापन महसूस कर रही थीं कि इसी दौरान उनकी मुलाकात रूसी चित्रकार स्वेतोस्लाब रोरिक से हुई। बाद में देविका रानी ने उनसे विवाह कर लिया और फि मुंबई को छोड़ बेंगलुरू में जाकर बस गईं। 

फिल्म इंडस्ट्री को दिया दिलीप कुमार

हिन्दी फिल्म इंडस्ट्री में दिलीप कुमार को लाने का श्रेय देविका रानी को जाता है। जब दिलीप कुमार काम की तलाश में पुणे से मुंबई आए, तो वो अपने दोस्त डॉ. मसानी से मिलने चर्चगेट स्टेशन गए। डॉ. मसानी साइकोलॉजिस्ट थे, जो उस वक्त बॉम्बे टॉकीज की मालकिन देविका रानी से मिलने जा रहे थे, लिहाजा दिलीप कुमार तब के युसुफ से साथ चलने को कहा और युसुफ तैयार भी हो गए। 

अब जब युसुफ वहां पहुंचे तो देविका रानी ने उनसे पूछा कि क्या तुमको उर्दू आती है, तो दिलीप कुमार ने बताया कि जी, अच्छी खासी आती है। देविका ने बिना देर किए उनको 1250 रुपये मासिक वेतन पर नौकरी पर रख लिया। तब यह काफी बड़े रकम हुआ करती थी।

दिलीप कुमार हमेशा अप-टू-डेट रहते थे, जो देविका रानी को काफी अच्छा लगता था। उन दिनों बॉम्बे टॉकीज में फि्म बन रही थी, नाम था 'ज्वार भाटा'। इस फिल्म के लिए उन्होंने दिलीप कुमार से कहा कि आप उस फिल्म के हीरो होंगे। 

देविका रानी को युसुफ खान, जो दिलीप कुमार का नाम है, पसंद नहीं था। ऐसे में उन्होंने इसे बदलने को कहा। तब देविका ने कहा कि तुम अपना नाम दिलीप कुमार रख लो, और इस तरह से यूसुफ खान, दिलीप कुमार बन गए।

हालांकि, फिल्म 'ज्वार भाटा' बॉक्स ऑफिस पर सफल तो नहीं रही, लेकिन हिन्दी फिल्म जगत के लिए किसी धरोहर की तरह ही है, क्योंकि इस फिल्म से ट्रेजेडी किंग दिलीप कुमार ने अपने एक्टिंग सफर की शुरुआत की थी। 

पद्मश्री लेने वाली बॉलीवुड की पहली महिला

फिल्म इंडस्ट्री में उत्कृष्ट योगदान देने के लिए भारत सरकार ने साल 1969 में जब दादा साहेब फाल्के पुरस्कार की शुरुआत की, तो इसकी सर्वप्रथम विजेता देविका रानी बनी। इसके अलावा देविका फिल्म इंडस्ट्री की प्रथम महिला बनीं, जिन्हें पद्मश्री से पुरस्कृत किया गया। बोल्ड एंड ब्यूटीफुल इमेज वाली इस अभिनेत्री ने 9 मार्च 1994 को इस फानी दुनिया को अलविदा कह दिया।

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