Betaal Review : बचकानी, बेतुकी और बासी है 'बेताल'

शाहरुख खान के बैनर तले बनी नेटफ्लिक्स की हॉरर वेब सीरीज़ 'बेताल' में विनीत कुमार, आहना कुमार, सुचित्रा पिल्लई अहम किरदारों में दिखाई देंगे। पैट्रिक ग्राहम और निखिल महाजन ने मिलकर इसका निर्देशन किया है। जबकि पटकथा को ग्राहम और सुहानी कंवर ने मिल कर लिखा है। 

Betaal web series Review
वेब सीरीज़ : बेताल 
निर्माता : रेड चिलीज एंटरटेनमेंट, ब्लमहाउस प्रोडक्शंस, एस के ग्लोबल एंटरटेनमेंट 
निर्देशक : पैट्रिक ग्राहम, निखिल महाजन
कलाकार : विनीत कुमार, आहना कुमरा, सुचित्रा पिल्लई, जीतेंद्र जोशी 
ओटीटी : नेटफ्लिक्स
सीज़न : 1
एपिसोड : 4 
रेटिंग : 1

शाहरुख खान के प्रोडक्शन रेड चिलीज एंटरटेनमेंट द्वारा नेटफ्लिक्स के लिए बनाई गई हॉरर वेब सीरीज़ 'बेताल' की कहानी पर चोरी का इल्ज़ाम लग चुका है। 'जॉम्बी' की इस कहानी पर दो दावेदारी, तो लगता है कि कहानी वाकई दमदार होगी। साथ में विनीत कुमार, आहना कुमरा सरीखे कलाकार इस सीरीज़ में हैं, जिनको उम्दा अदाकारी के लिए कुख्यात किया गया है। ऐसे में खुद को इस सीरीज़ को देखने से कैसे रोका जाए। लिहाजा देख लिया गया। अब देख लिया गया है, तो फिर आप रिव्यू पढ़िए। 

कहानी 

इस वेब सीरीज़ की कहानी निल्जा नाम के गांव में घटती है। इस गांव में एक आधी बनी सुरंग है, जो कई सालों से बंद है। सरकार उस सुरंग को खोल कर हाइवे बनवाना चाहती है, तो वहीं निल्जा के रहवासी इस सुरंग को खोलने के सख्त खिलाफ हैं। 

दरअसल, गांववालों का मानन है कि पास की 'बेताल' पहाड़ी पर काला साया है और यदि सुरंग खुली, तो भीतर से कोई शक्तिशाली ताकत आएगी और सबकी जान ले लेगी। वहीं उस हाइवे को बनाने का टेंडर पाने वाली कंस्ट्रक्शन कंपनी का मालिक अपने एक मुलाजिम अजय मुदलवन (जीतेंद्र जोशी) किसी भी तरह से गांव खाली करवाने की जिम्मेदारी सौंपता है। वह किसी भी तरह से अगले दिन से हाइवे का काम शुरू करना चाहता है, क्योंकि मुख्यमंत्री इनॉग्यूरेशन के लिए आने वाले हैं। 

अब मुदलवन अपने इस काम के लिए सरकार के लिए काम करने वाली सीआईपीडी नाम के एक फोर्स का सहारा लेता है, जिसकी मुखिया होती है कमांडेंट त्यागी (सुचित्रा पिल्लई), जो सेकेंड इन कमांड ऑफिसर विक्रम सिरोही (विनीत कुमार) को अपनी टीम 'बाज़ स्कॉड' के साथ निल्जा पहुंचने का आदेश देती है। विक्रम अपने टीम के साथ इस गांव को 'बाय हुक और क्रुक' खाली करवा कर सुरंग में घुस जाता है। 

इस सुरंग में घुसने से लेकर अगले बारह घंटे के भीतर अपनी जान बचाकर उस गांव से निकलने की कहानी है 'बेताल'। 

समीक्षा

चार एपिसोड की इस वेब सीरीज़ तीन घंटे में निबट जाती है। इस सीरीज़ को देखते हुए कई सवाल ज़ेहन में खड़े होते हैं, लेकिन किसी का जवाब इस सीरीज़ में देने की ज़रूरत नहीं समझी गई या बनाने वाले को लगा कि दर्शकों उनके मन की बात पढ़ लेंगे। 

'जॉम्बीज़' के इतिहास को बताने से ज्यादा ज़ोर विक्रम सिरोही के किरदार को मजबूत सिपाही दिखाने पर लगाया गया। कुछ सीन्स और डायलॉग्स ऐसे हैं, जो सस्ती कॉमेडी करते दिखाई पड़ते हैं।

पैट्रिक ग्राहम का निर्देशन निराशाजनक है। पास्ट और प्रजेंट के बीच बैलेंस वो बना ही नहीं पाए। 'जॉम्बी' की आंखों में लाल बल्ब लगाकर ग्राहम दर्शकों को मूर्ख बनाने की भरसक कोशिश करते हैं। राख, हल्दी, नमक से 'जॉम्बी' को भगाने के उपाय बचकाने लगते हैं। 

निर्देशन, पटकथा कमजोर है, तो एक्टर्स की परफॉर्मेंस भी डूब गई है। कलाकारों को यह समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या और क्यों कर रहे हैं। विनीत कुमार, आहना कुमरा, सुचित्रा पिल्लई, जीतेंद्र जोशी, कलाकार अच्छे हैं, लेकिन वो अपना जादू चलाने कामयाब नहीं हुए हैं।

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