महमूद से क्यों खौफ खाते थे हीरो और विलेन?

लीजेंडरी एक्टर महमूद की आज पुण्यतिथि है। हालांकि, वो कहा करते थे, 'लीजेंड-वीजेंड नहीं होता यार!' अब भले ही उन्हें ऐसा न लगता हो, लेकिन बॉलीवुड में उनका रसूख कुछ ऐसा रहा कि लीड एक्टर से पहले उनकी कास्टिंग होती थी और फीस भी सबसे ज्यादा मिलती थी। स्पॉन्टेनियस इतने थे कि दिलीप कुमार, राजकपूर, देवानंद सरीखे सितारे उन्हें अपनी फिल्मों में लेने से झिझकते थे। दरअसल, डर था कि कहीं यह हावी न हो जाए। 

Mehmood
महमूद का जन्म 29 सितम्बर 1932 को मुंबई में हुआ था। अपने माता-पिता की आठ संतानों में वो दूसरे नंबर की संतान थे। बतौर बाल कलाकार अपने करियर की शुरुआत करने वाले महमूद ने घर के गुजर-बसर के लिए अंडे लेकर टॉफीज़ तक बेची, कार चलाई और टेनिस कोच तक का काम किया। 

उनकी भाषा में हैदराबादी ज़बान का अंदाज दर्शको को बेहद पसंद आता था। दरअसल, उनके पुरखे तमिलियन थे। वहीं अपने लाजवाब अभिनय से लोगों को अपना दीवाना बनाने वाले महमूद ने अपने करीयर में तकरबीन 300 से ज्यादा हिन्दी फिल्मों में काम किया है। 

ऐसे में कोई उनसे कह देता था कि आप लीजेंड एक्टर हैं, तो वो तपाक से बोलते थे, 'कोई लीजेंड-वीजेंड नहीं होता यार!'। हालांकि, वो ऐसे सितारे थे, जिनसे हीरो से लेकर विलेन तक खौफ खाया करते थे। अपनी फिल्मों में उन्हें लेने से कतराते थे। फिल्म के पोस्टर पर हीरो से बराबर उनकी तस्वीर लगती थी। यहां तक कि उन्हें हीरो से ज्यादा फीस दी जाती थी। प्रोड्यूसर हीरो से पहले उन्हें कास्ट किया करते थे। 

23 जुलाई 2004 को अमेरिका के पेंसिलवेनिया में उनका निधन हो गया था। आज उनकी पुण्यतिथि है। ऐसे में चलिए महमूद साहब को हम कुछ रोचक किस्सों के जरिये याद करते हैं। 

रेलवे स्टेशन पर उतारने लगे कपड़े 

मामला यह है कि किसी बात से खफा हो कर महमूद घर छोड़ कर जाने लगे। गुस्से-गुस्से में वो रेलवे स्टेशन पहुंच गए और उनके पीछे-पीछे उनकी मां। कुछ भी करने पर जब महमूद वापस लौटने को तैयार न हुए, तो उनकी मां ने उन्हें खूब खरी-खोटी सुनाया और कहा कि ये जो कपड़े भी तुमने पहन रखे हैं, ये तुम्हारे बाप के पैसों के हैं। फिर क्या इतना सुनना था कि महमूद अपने कपड़े उतारने लगे। ऐसा करते देख, मां ने उनको काफी समझाया, मिन्नते कीं। बाद में वो मान गए। बाद में उन्होंने छोटे-मोटे काम करना शुरू किया। उन्होंने टॉफी बेचने से लेकर अंडे बेचने का काम किया और बाद में मीना कुमारी को टेबल टेनिस खिलाते थे। राजकुमार संतोषी के पिता डायरेक्टर थे, उनकी गाड़ी चलाते थे।

बेडरूम में गुरु दत्त का फोटो

महमूद के बेडरूम में गुरुदत्त की बड़ी सी तस्वीर लगी हुई थी। बतौर बाल कलाकार उन्होंने ‘किस्मत’ और ‘संन्यासी’ जैसी फिल्मों में मामूली भूमिका निभाई, लेकिन शादी और फिर पिता बनने के बाद पैसे कमाने के लिए उन्होंने एक्टिंग को गंभीरता से लेना शुरू कर दिया। राज कपूर और माला सिन्हा की साल 1958 में रिलीज हुई फिल्म ‘परवरिश’ में उन्हें बड़ी भूमिका मिली। फिल्म में वो राज कपूर के भाई के रोल में थे। बाद में गुरु दत्त ने उन्हें ‘सीआईडी’ और ‘प्यासा’ जैसी फिल्मों में काम दिया। गुरु दत्त का यह अहसान वो कभी नहीं भूले और उन्होंने अपने बेडरूम में गुरुदत्त की एक बड़ी तस्वीर लगा रखी थी। 

‘कुंवारा बाप’ महमूद की कहानी

फिल्म ‘कुंवारा बाप’ को महमूद की रियल लाइफ इंसीडेंट पर बेस्ड थी। फिल्म में उन्होंने एक गरीब रिक्शे वाले का रोल किया और पोलियो से ग्रस्त उनके 15 साल के बेटे का रोल मैकी ने किया। मैकी यानी मकदूम अली, जो महमूद के तीसरे नंबर बेटे थे। उन्हें असल में पोलियो हो गया था। महमूद विदेश ले गए। बहुत इलाज करवाया, लेकिन मैकी वैसे ही रहे।

फिल्म में उन्होंने इसी कहानी को अपने अंदाज में दिखाया। वे दिखाना चाहते थे कि उन जैसा अमीर आदमी इतने पैसे लगाकर भी अपने अजीज़ बेटे का इलाज करवाने में लगा है, उस गरीब बाप का क्या हाल होता होगा जिसके पास पैसे भी नहीं हैं। इसी फिल्म के गाने ‘सज रही गली मेरी अम्मा चुनर गोटे में..' में उनके पिता मुमताज अली भी नाचते दिखे थे। यह इकलौती फिल्म है, जिसमें महमूद के परिवार की तीनों पीढ़ियां साथ में थीं।

हीरो से ज्यादा वसूलते थे फीस

फिल्म‘मैं सुंदर हूं’ के लिए अभिनेता विश्वजीत को 2 लाख रुपये की फीस मिली थी, जबकि महमूद को 8 लाख रुपये दिए गए। इससे एक साल पहले रिलीज हुई फिल्म ‘हमजोली’ में जीतेंद्र हीरो थे, लेकिन वहां भी अन्य भूमिका कर रहे महमूद को ज्यादा फीस मिली। कई सालों के बाद खुद महमूद ने कहा था कि जितनी फीस अमिताभ सुपरस्टार बनने के बाद लेते थे, उतनी वे अपने समय में लिया करते थे।

किशोर कुमार से डरते थे महमूद

फिल्म इंडस्ट्री में सिर्फ किशोर कुमार ही थे, जिनकी एक्टिंग से महमूद घबराते थे। एक बार उनसे किसी ने पूछा कि वे किस एक्टर की एक्टिंग से डरते हैं, तो उन्होंने जवाब दिया, 'मैं सभी एक्टर्स की सीमाएं जानता हूं, लेकिन किशोर कुमार का पता लगाना मुश्किल है। वो अपने किरदार के साथ कभी भी कुछ भी कर जाते हैं।' इसीलिए जब उन्होंने ‘पड़ोसन’ फिल्म प्रोड्यूस की तो उसमें किशोर कुमार को भी लिया। उस फिल्म की हाइलाइट ही महमूद और किशोर की जुगलबंदी थी। फिल्म ‘साधू और शैतान’ में दोनों ने साथ काम किया था। 

महमूद को किशोर ने काम नहीं दिया

जब किशोर कुमार स्थापित सिंगर-एक्टर-डायरेक्टर बन चुके थे, तो महमूद उनके पास काम मांगने के लिए आए, लेकिन किशोर ने उनको अपनी फिल्म में काम नहीं दिया। कहा जाता है कि महमूद से किशोर ने कहा, 'ऐसे आदमी को क्यों मौका दूं, जो आगे चल कर मेरा ही प्रतिद्वंदी हो जाने वाला है।' इस पर महमूद नाराज नहीं हुए। उन्होंने कहा, 'कोई बात नहीं लेकिन जब मैं फिल्म बनाऊंगा तो उसमें आपको जरूर लूंगा।' फिर जब अपने बैनर की फिल्म ‘पड़ोसन’ उन्होंने बनाई, तो उसमें किशोर कुमार को लिया।

राजेश खन्ना को जड़ दिया था झन्नाटेदार थप्पड़

यह क़िस्सा तब है कि जब राजेश खन्ना सुपरस्टार बन गए थे। हालांकि, महमूद भी सुपरस्टार रह चुके थे और बतौर एक्टर-डायरेक्टर बिजी थे। महमूद ने अपनी फिल्म ‘जनता हलवदार’ में राजेश खन्ना को लिया था और उनके साथ हेमा मालिनी हीरोइन थीं। महमूद अपने फार्म हाउस में फिल्म की शूटिंग कर रहे थे। वहां एक दिन महमूद का एक बेटा राजेश से मिला और सीधे दुआ-सलाम करके निकल गया। राजेश इससे नाराज हो गए कि सिर्फ हैलो क्यों बोला? उस दिन के बाद से राजेश खन्ना सेट पर लेट आने लगे। शूटिंग में दिक्कत आने लगी। रोज महमूद को घंटों इंतजार करना पड़ रहा था। महमूद डायरेक्टर भी थे और एक्टर भी ऐसे में एक दिन महमूद ने सबके सामने राजेश खन्ना को थप्पड़ लगा दिया और बोले, 'आप सुपरस्टार होंगे अपने घर के, मैंने फिल्म के लिए आपको पूरा पैसा दिया है और आपको फिल्म पूरी करनी ही पड़ेगी।' इसके बाद फिल्म का काम सही से चला।

महमूद के साथ काम करने में झिझकते थे राजकपूर देवानंद, दिलीप कुमार 

महमूद अपने सीन और किरदार को लेकर काफी स्पॉन्टेनियस होते थे। वे डायलॉग बोलते थे तो बड़े एक्टर्स और सुपरस्टार भी घबरा जाते थे, क्योंकि शॉट देते हुए वे पूरी तरह इम्प्रोवाइज़ करते थे। सामने वाले को पता नहीं होता था कि वे क्या करने वाले हैं? 

ख़ास बात यह है कि महमूद को कभी किसी ने किसी सीन की रिहर्सल नहीं करते थे। वो जो भी करते थे लाइव करते थे। तभी राज कपूर, देवानंद, दिलीप कुमार सरीखे सितारे अपनी फिल्मों में महमूद को लेने से परहेज करते थे। यक़ीन न हो, तो फिल्मोग्राफी देख लीजिए। 

महमूद से डर गए थे मनोज कुमार और प्राण

महमूद का असर कुछ ऐसा था कि प्राण और मनोज कुमार ने उन्हें अपनी फिल्म से निकलवाने के लिए एड़ी से चोटी तक का जोड़ लगा दिया था। जी हां, दरअसल यह किस्सा फिल्म 'गुमनाम' से जुड़ा है। इस फिल्म में वैसे तो मनोज कुमार, प्राण, हेलेन, नंदा जैसे कई स्टार्स थे, लेकिन इसे याद महमूद के लिए किया जाता है। 

हालांकि, फैक्ट यह है कि जब 'गुमनाम' की स्क्रिप्ट लिखी गई थी, तब उसमें महमूद वाला रोल नहीं था। निर्माता एन.एन. सिप्पी ने फाइनेंसर्स के कहने पर उनके लिए खासतौर पर एक रोल लिखवाया था। ये काम सौंपा गया था निर्देशक राजा नवाथे को। अब जब प्राण और मनोज कुमार को इस बात की जानकारी हुई, तो दोनों ने जमकर विरोध करना शुरू कर दिया। दोनों को डर था कि महमूद फिल्म में हावी हो जाएंगे। 

प्राण और मनोज कुमार लाख हाथ-पांव मारते रहे, लेकिन एन.एन. सिप्पी ने उनकी एक न सुनी। इसके बाद फिल्म में महमूद के लिए एक स्पेशल गाना भी लिखवाया गया। इस गाने को भी विरोध हुआ। मनोज कुमार ने कहा कि इससे फिल्म का स्तर गिर जाएगा। यहां तक कि मनोज कुमार ने इसके लिए निर्देशक राज खोसला की सिफारिश भी लगवाई, लेकिन सिप्पी ने अनदेखा कियाष और उस गाने के साथ फिल्म को रिलीज़ किया गया। गाना था, 'हम काले हैं तो क्या हुआ दिलवाले हैं'। 

फिल्म रिलीज़ हुई, ब्लॉकबस्टर हुई। महमूद की भूमिका और उनके गाने, दोनों को दर्शकों ने खूब पसंद किया। फिल्म ने 2.6 करोड़ रुपये का कारोबार किया था। 

अमिताभ बच्चन के 'दूसरे पिता' थे महमूद, हो गए थे नाराज़

महमूद अंतिम दिनों में अमिताभ से नाराज़ हो गए थे। एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था, 'मेरा बेटा अमित आज 25 साल का हो गया है। फिल्म लाइन में। अल्लाह उसे सेहत दे। ऊरूज पर रखे। जिसको मैंने काम दिया, मैं उसके पास काम मांगने जाऊं तो मुझे शर्म नहीं आएगी? इसलिए मैं नहीं गया। जिस आदमी को सक्सेस मिले उसके दो बाप हो जाते हैं। एक बाप वो जो पैदा करता है और एक बाप वो जो पैसा कमाना सिखाता है। तो पैदा करने वाला बाप तो बच्चन साहब है हीं और मैं वो बाप हूं जिसने कमाना सिखाया। अपने साथ में रख के। घर में रख के। पिक्चरें दिलाईं। पिक्चरों में काम दिया। बहुत इज्जत करता है अमित मेरी। बैठा होगा, पीछे से मेरी आवाज सुनेगा, खड़ा हो जाएगा, लेकिन आखिर में मुझे इतना फील हुआ जब मेरा बाइपास हुआ, ओपन हार्ट सर्जरी। उसके फादर बच्चन साहब (हरिवंशराय) गिर गए थे तो मैं उन्हें देखने के लिए अमित के घर गया, एक कर्टसी है और उसके एक हफ्ते बाद जब मेरा बाइपास हुआ तो अमित अपने वालिद को लेकर वहां आए ब्रीच कैंडी (अस्पताल), जहां मैं भर्ती था, लेकिन अमित ने वहां ये दिखा दिया कि असली बाप असली होता है और नकली बाप नकली होता है। उसने आके मुझे हॉस्पिटल में विश भी नहीं किया। मिलने भी नहीं आया। एक गेट वेल सून का कार्ड भी नहीं भेजा। एक छोटा सा फूल भी नहीं भेजा। ये जानते हुए कि भाईजान भी इसी हॉस्पिटल में हैं। खैर, मैं बाप ही हूं उसका और कोई बद्दुआ नहीं दी। आई होप, दूसरों के साथ ऐसा न करे।'

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