फिल्म समीक्षा : पिंक

‘विकी डोनर’, ‘मद्रास कैफे’ और ‘पीकू’ जैसी फिल्में बनाने वाले शूजित सरकार के प्रोडक्शन तले बनी फिल्म ‘पिंक’ रिलीज़ होने वाली है। इस बार फिल्म के निर्देशन की कमान अनिरुद्ध रॉय चौधरी के हाथों में शूजित ने सौंपी है। अनिरुद्ध की यह पहली हिन्दी फिल्म है, इससे पहने वो बंगाली भाषा की फिल्में बना चुके हैं। हर बार अपनी फिल्मों में समाज को एक संदेश देने की कोशिश करते रहते हैं, क्या इस फिल्म में भी शूजित ने वहीं कोशिश की है और क्या उनकी ये कोशिश कामयाब हुई है। इन्हीं सवालों के जवाब आइए तलाशते हैं।

Amitabh Bachchan And Tapsee Pannu in Film Pink
निर्माता- रश्मि शर्मा, शूजित सरकारनिर्देशक - अनिरूद्ध रॉय चौधरी
कलाकार- अमिताभ बच्चन, तापसी पन्नू, कीर्ति कुल्हारी,
अंगद बेदी, पीयूष मिश्रा, एंड्रिया तेरियांग, विजय वर्मा
संगीत - शांतनु मोईत्रा, अनुपम रॉय
जॉनर - कोर्टरूम ड्रामा-थ्रिलर
रेटिंग - 4/5


फिल्म कई मुद्दों पर सवाल उठाती है। हर एक सवाल से दर्शक भीतर तक हिल जाता है। ‘अच्छी लड़की’ की परिभाषा जो समाज में व्याप्त है, उस पर कुठाराघात करती है ये फिल्म। इस फिल्म में सिर्फ एक छोटी सी बात जिसे हर जानता तो हर कोई है, लेकिन उसे समझना कोई नहीं चाहती है, उसे ही बहुत ही प्रभावशाली ढंग से समझाने की कोशिश की गई है।

फिल्म के एक सीन में अमिताभ बच्चन कहते हैं, ‘ ‘NO’ यानि ‘ना’ सिर्फ एक शब्द’ नहीं है, एक पूरा वाक्य है अपने आप में, इसे किसी एक्सप्लेनेशन की जरूरत नहीं है। ‘No’Means No। चाहें वो आपकी गर्लफ्रेंड हो, आपकी पत्नी हो या फिर कोई सेक्स वर्कर हो’। 

कहानी

दिल्ली में रहने वाली तीन लड़कियों मीनल (तापसी पन्नू), फलक (कीर्ति कुल्हाड़ी) और एंड्रीया (एंड्रीया तारियांग) की कहानी है। 1 मार्च, रविवार की रात फरीदाबाद के पास स्थित सूरजकुंड के इलाके में रॉक कॉन्सर्ट के बाद ये तीनों लड़कियां वहां मौजूद तीन लड़कों के साथ पास के ही एक रिसॉर्ट में पार्टी करने चली जाती हैं।

वहां कुछ वजह से आपसी झड़प के बाद राजवीर (अंगद बेदी) की आंख के पास गहरी चोट लग जाती है, जिसकी वजह से ये तीनों लड़के, मीनल के पीछे पड़ जाते हैं और इसका अंजाम इन तीनों लड़कियों को भुगतान पड़ता है। मीनल के ऊपर केस हो जाता है। रिटायर्ड वकील दीपक सहगल (अमिताभ बच्चन) सामने आकर इन तीनों लड़कियों की तरफ से केस लड़ते हैं।

इस कोर्ट में कई तरह के सवाल पूछे जाते हैं, जैसे- क्या आप वर्जिन हैं? आपने कितने लोगों के साथ सेक्स किया? क्या आप सेक्स के जरिए पैसे कमाती हैं? कोर्ट में लड़िकयों पर उठ रहे हर सवाल का जवाब व्यंग के लहजे में देते हुए दीपक सहगल लड़कियों के लिए कुछ सेफ्टी रूल्स भी बताते हैं।

जैसे- लड़कों के साथ अकेले लड़कियों को कहीं घूमने नहीं जाना चाहिए। किसी के साथ उन्हें मुस्कुरा कर बातचीत नहीं करनी चाहिए। टच करके तो बिल्कुल भी बात नहीं करनी चाहिए क्योंकि इसे हिंट समझा जाएगा। लड़कियों को देर रात तक घर से बाहर नहीं रहना चाहिए क्योंकि हमारे यहां तो घड़ी की सुई लड़कियों का कैरेक्टर डिसाइड करती है।

निर्देशन-पटकथा

फिल्म का निर्देशन कमाल का है। निर्देशक अनिरूद्ध राय चौधरी की यह पहली हिंदी फिल्म है और शायद उन्होंने यह सोचकर इसे बनाई है कि उन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि फिल्म कितने लोग देखते हैं।

बल्कि उन्हें इस बात से फर्क पड़ता है कि जितने भी लोग फिल्म देखते हैं, उनके दिल-ओ-दिमाग़ पर उसकी गहरी छाप पड़े और पड़ती भी है। ये इतनी कसी हुई फिल्म है कि यदि इसके स्क्रिप्ट राइटर की बात ना करें तो नाइंसाफी होगी।

इसके स्क्रिप्ट राइटर रितेश शाह हैं। कुछ दिनों पहले एक इंटरव्यू में शूजित सरकार ने कहा था कि इस फिल्म के लिए लड़कियों को लेना उतना मुश्किल नहीं था, जितना उनके किरदारों के साथ न्याय करना। फिल्म को देखने के बाद लगता है कि वाकई रितेश ने हर किरदार के साथ पूरा न्याय किया है। इसके अलावा अभिक मुखोपाध्याय की सिनेमेटोग्राफी भी काफी दिलचस्प है।

अभिनय

वकील के रूप में अमिताभ बच्चन ने बहुत ही उम्दा अभिनय किया है, ऐसा वकील जो रिटायर्ड है साथ ही बाइपोलर बीमारी का शिकार है। बेशक किरदार मुश्किल था, लेकिन अमिताभ बच्चन ने बेहतरीन तरीके से इसे निभाया। वहीं कोर्ट रूम में अभिनेता पीयूष मिश्रा और उनके द्वारा प्रयोग में लाए गए लीगल टर्म्स भी रियलिटी के करीब इस फिल्म को लाते हैं।

पियूष मिश्रा ने अच्छा काम किया है। एक्ट्रेस तापसी पन्नू और कीर्ति कुल्हारी ने कुछ ऐसे एक्सप्रेशन से भरपूर सीन दिए हैं जो आपको आखिर तक याद रहेंगे और इसका फायदा इन दोनों अदाकाराओं को आने वाले प्रोजेक्ट्स में जरूर मिलेगा। एंड्रीया तारियांग, अंगद बेदी का काम भी सराहनीय है। एक तरह से बहुत ही परफेक्ट कास्टिंग है। हालांकि, कुछ किरदार ऐसे भी थे जिनकी मौजूदगी तो थी, लेकिन उन्हें कैश नहीं किया जा सका।

संगीत

फिल्म के म्यूजिक कहानी के साथ चलता है और आपको सोचने पर मजबूर करता है। अनुपम रॉय और शांतनु मोईत्रा का संगीत अच्छा है।

ख़ास बात

अच्छी कहानी, उम्दा एक्टिंग और बेहतरीन फिल्में देखना पसंद करते हैं, तो जरूर देखें।

‘विकी डोनर’, ‘मद्रास कैफे’ और ‘पीकू’ के निर्देशक शूजित सरकार की फिल्म है 'पिंक' ( Film Pink ) जो कि समाज में लड़कियॉं और लड़कियों के प्रति समाज के नज़रिये को वयां करती है।

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