फिल्म समीक्षा: पैडमैन

‘मेंस्ट्रूअल मैन’ के नाम से मशहूर पद्मश्री से सम्मानित अरुणाचलम मुरुगनाथन की बायोपिक इस सप्ताह रिलीज़ हुई है। इसे ‘चीनी कम’, ‘पा’ और ‘की एंड का’ सरीखी फिल्मों का निर्देशन करने वाले आर बाल्की ने निर्देशित किया है। फिल्म में अक्षय कुमार केंद्रिय भूमिका निभा रहे हैं, तो उनके साथ सोनम कपूर और राधिका आप्टे अहम किरदारों में। आइए करते हैं फिल्म की समीक्षा। 

फिल्म पैडमैन में अक्षय कुमार
फिल्म : पैडमैन
निर्माता : ट्विंकल खन्ना, क्रिअर्ज एंटरटेनमेंट, केप ऑफ गॉड फिल्म्स, होप प्रोडक्शंस
निर्देशक : आर बाल्की
कलाकार : अक्षय कुमार, राधिका आप्टे, सोनम कपूर, अमिताभ बच्चन
संगीत : अमित त्रिवेदी 
जॉनर : बायोग्राफिकल कॉमेडी ड्रामा
रेटिंग : 4/5 

तमिलनाडु के अरुणाचलम मुरुगनाथन को अब ‘मेंस्ट्रुअल मैन’ के नाम से जाना जाता है। इन्होंने सस्ते सेनेटरी पैड बनाकर महिलाओं को पीरियड्स के दौरान हाइजिंन मैंटेन करने की मुहिम चलाई। इनको पद्मश्री से सम्मानित भी किया गया। अब इनकी ही बयोपिक लेकर अक्षय कुमार आए हैं। इस बायोपिक को आर बाल्की ने सजाया-संवारा है। यूं तो यह फिल्म गणतंत्र दिवस के मौके पर यानी 25 जनवरी को रिलीज़ होने वाली थी, लेकिन ‘पद्मावत’ के लिए इस फिल्म को पोस्टपोन कर दिया गया और अब यह 9 फरवरी को सिनेमाघरों में उतरी है। 

कहानी

यह कहानी है लक्ष्मीकांत चौहान उर्फ़ लक्ष्मी यानी अक्षय कुमार की, जो मध्यप्रदेश के छोटे से कस्बे में रहता है। वो एक फैक्ट्री में काम करता है। लक्ष्मी अपनी पत्नी गायत्री यानी राधिका आप्टे से बहुत प्यार करता है। एक दिन उसे पता चलता है कि उसकी पत्नी पीरियड्स के दौरान गंदे कपड़ों का प्रयोग करती है। क्योंकि सेनेटरी पैड काफी महंगे होते हैं, जो उनकी आमदनी में संभव नहीं है। इसके बाद लक्ष्मी खुद सेनेटरी पैड बनाने का फैसला करता है। 

लक्ष्मी के लिए सेनेटरी पैड बनाने की राह इतनी आसान नहीं होती है। उसकी सेनेटरी पैड बनाने की लगन का पड़ोसी मज़ाक बनाते हैं। माहवारी के दिनों में महिलाओं की ज़िंदगी को आसान बनाने के लिए उसे काफी संघर्ष करना पड़ता है। समाज से उसे टकराना पड़ता है, क्योंकि समाज में माहवारी को लेकर अलग तरह की धारणाएं हैं। 

समाज को एक ऐसे मुद्दे की तरफ खींच कर ले जाना और जागरुक करने के दौरान लक्ष्मी को कई मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। वो अपने संघर्ष को किस तरह से पूरा करके लक्ष्य को प्राप्त करता है, इसे देखने के लिए थिएटर का रुख करना होगा। 

समीक्षा

आर बाल्की का निर्देशन अच्छा रहा। पीसी श्रीराम की सिनेमैटोग्राफी भी बेहतरीन है। फिल्म के लिए लोकेशन का चुनाव भी अच्छी तरह से किया गया है। फिल्म को यदि आप दो हिस्सों में बांटेंगे, तो पहला हिस्सा काफी अच्छा था, लेकिन दूसरा हिस्सा कुछ ढीला रहा। फिल्म कई बार बोझिल लगी। दरअसल, ठीक-ठाक चल रहे ट्रैक के बीच में रोमांटिक नंबर्स ने फिल्म की रफ्तार को सुस्त कर दिया। 

हालांकि, फिल्म में अमिताभ बच्चन का आना एक सप्राइज पैकेज था, लेकिन उनकी स्पीच इतनी लंबी कर दी कि बोरियत होने लगती है। 

वहीं कलाकारों की बात करें, तो लक्ष्मी के किरदार में अक्षय पूरी तरह जमे हैं। अक्षय ने अरुणाचलम की बॉडी लैंग्वेज, उनकी खूबियों और जोखिमों को उनसे काफी हद तक मैच कर किया है। राधिका आप्टे भी अपने किरदार में फबती हैं। उनकी और अक्षय की कैमिस्ट्री देखने लायक है। म्यूजिशियन परी की भूमिका में सोनम कपूर भी अच्ची रही हैं। 

अमित त्रिवेदी का संगीत भी सुकूनदेह है। हालांकि, कई बार गाने बेवजह ठूंसे से लगे। 

ख़ास बात

यह फिल्म ‘मस्ट वॉच’ की कैटेगरी में होनी चाहिए। इस सप्ताहांत एंटरटेनमेंट के साथ मैसेज लेना है, तो फिर इस फिल्म को देखने का विचार ज़रूर बनाना चाहिए। तकनीकी कारणों को छोड़ दें, तो पैसा वसूल फिल्म है।

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