फिल्म समीक्षा : नानू की जानू

अभय देओल दो साल बाद सिल्वर स्क्रीन पर वापसी कर रहे हैं। हॉरर कॉमेडी जॉनर की इस फिल्म को फराज़ हैदर ने निर्देशित किया है। इस फिल्म में अभय और पत्रलेखा की तरोताज़ा जोड़ी देखने को मिल रही है। दोनों कलाकार ही काफी समय से कैमरे से दूर थे, लेकिन इस शुक्रवार रिलीज़ हुई दोनों की फिल्म ‘नानू की जानू’ क्या गुल खिलाती है, वो तो बॉक्स ऑफिस के रिपोर्ट ही बताएंगे। फिलहाल फिल्म की समीक्षा करते हैं।

Abhay Deol, Ptralekh, Brajendra Kala, Manu Hrishi in Poster of film Nanu Ki Jaanu
फिल्म : नानू की जानू
निर्माता : साजिद कुरैशी
निर्देशक : फराज़ हैदर
कलाकार : अभय देओल, पत्रलेखा, बृजेंद्र काला, मनु ऋषि
संगीत : मीत ब्रोस अंजान, जीत गांगुली, साजिद-वाजिद, गुणवंत सेन
जॉनर : हॉरर कॉमेडी
रेटिंग : 2/5


हॉरर और कॉमोडी दोनों ही जॉनर को भारतीय दर्शक बड़े चाव से देखते हैं। लेकिन फिल्म ‘नानू की जानू’ में हॉरर के साथ कॉमेडी की जबरदस्त तड़का देखने को मिलेगा। फराज़ अहमद के निर्देशन में बनी इस फिल्म में अभय देओल, पत्रलेखा, मनु ऋषि और बृजेंद्र काला अहम भूमिकाओं में हैं। फिल्म में कितना दम, आइए देखते हैं।

कहानी

फिल्म की कहानी आनंद उर्फ़ नानू यानी अभय देओल की है। नानू दिल्ली का रहने वाला है और लोगों को डरा-धमका कर मकान खाली करवाता है। नानू का दोस्त है डब्बू यानी मनु ऋषि, जो नानू के काम में उसकी मदद करता है। अब मुसीबत तब खड़ी हो जाती है, जब एक दिन अचानक नानू के साथ अजीब-ओ-ग़रीब घटनाएं होने लगती हैं। इन घटनाओं से नानू परेशान हो जाता है। बाद में नानू अपने दोस्त डब्बू और फिर पड़ोसियों से मदद मांगती है, लेकिन कोई भी नानू की मदद नहीं कर पाता।

नानू को कोई और नहीं, बल्कि एक आत्मा परेशान कर रही है। उस आत्मा का नाम है सिद्धी उर्फ़ जानू यानी पत्रलेखा। अब जानू की आत्मा नानू को एक खास मक़सद से परेशान करती है। दरअसल, जानू की आत्मा चाहती है कि नानू उसके साथ उसके घर में ही रहे, क्योंकि वो नानू से प्रेम करने लगती है।

एक आत्मा या यूं कहिए एक भूतनी और इंसान के बीच मोहब्बत। अब क्या इस मोहब्बत को मक़ाम मिलता है या फिर नानू, जानू से पीछा छुड़ा पाता है। इन सब सवालों के जवाब के लिए थिएटर का रूख करना होगा।

समीक्षा

सबसे पहले निर्देशन की करते हैं। फराज़ हैदर का निर्देशन औसत रहा। हालांकि, कुछ सीन्स इतने असरदार रहे कि दर्शक अपनी हंसी नहीं रोक पाए। लेकिन इसका क्लाइमैक्स काफी लचर था। इसके क्लाइमैक्स को बेहतर बनाया जा सकता था।

वहीं अभिनय की बात करें, तो फिल्म में अभय देओल ने अपना कमाल दिखाया है। पत्रलेखा कुछ देर के लिए ही नज़र आईं, लेकिन वो भी प्रभावी रहीं। वहीं मनु ऋषि और बृजेंद्र काला का काम भी अच्छा रहा।  संगीत ठीक-ठाक ही है। सपना चौधरी का डांस नंबर भी फिल्म में है।

ख़ास बात

वन टाइम वॉच फिल्म है। यदि वीकेंड में कुछ ख़ास योजना नहीं है, तो फिर इस फिल्म को देखा जा सकता है।

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