फिल्म समीक्षा : 102 नॉट आउट

उमेश मिश्रा के निर्देशन में बनी फिल्म ‘102 नॉट आउट’ सिनेमाघरों में उतर चुकी है। इस फिल्म में पूरे 27 सालों के बाद अमिताभ बच्चन और ऋषि कपूर एक साथ स्क्रीन शेयर कर रहे हैं। मशहूर गुजराती प्ले को उमेश ने फिल्म बना कर परदे पर उतारा है। 102 साल के पिता और 75 साल के पुत्र की कहानी किस हद तक दर्शकों का मनोरंजन कर पाती है, वो तो बॉक्स ऑफिस रिपोर्ट से जाहिर होगा। फिलहाल करते हैं, फिल्म समीक्षा....

अमिताभ बच्चन और ऋषि कपूर

फिल्म : 102 नॉट आउट
निर्माता : ट्रीटॉप एंटरटेनमेंट, बेंचमार्क पिक्चर्स, सोनी पिक्चर्स एंटरटेनमेंट फिल्म्स इंडिया
निर्देशक : उमेश शुक्ला
कलाकार : अमिताभ बच्चन, ऋषि कपूर, जिमित त्रिवेदी
संगीतकार : सलीन-सुलेमान, जॉर्ज जोसेफ 
जॉनर : कॉमेड-ड्रामा
रेटिंग : 4/5

उमेश शुल्का ने दो शसक्त अभिनेताओं को एक साथ लेकर ‘102 नॉट आउट’ फिल्म बनाई है। उम्रदराज़ पिता-पुत्र के जीवन को देखने के अलग-अलग नज़रिये को दिखाती यह फिल्म काफी ख़ास है। जहां एक तरफ स्टारकास्ट जबरदस्त है, तो वहीं कहानी भी नए तरीके की है। तो क्या यह फिम फैमिली एंटरटेनर बन पाएगी....आइए खोलें इसकी परतें। 

कहानी

फिल्म की कहानी 102 साल के दत्तात्रेय वखारिया यानी अमिताभ बच्चन और 75 साल के बेटे बाबूलाल वखारिया की है। जहां दत्तात्रेय दुनिया में सबसे ज्यादा उम्र तक जीने का रिकॉर्ड बनाना चाहता है। वो चाहते हैं कि चीन के 118 वर्षीय ओंग चोंग तुंग का रिकॉर्ड तोड़े दे। वहीं उनका बेटा बाबूलाल, जो अपने पिता से बिलकुल उलट सोच रखता है। 

जहां दत्तात्रेय खुद को नकारात्मकता से दूर रखता है और खुश रहता है। वहीं उसका अपनी ज़िंदगी से खुश नहीं रहता है। इसी बीच एक दिन दत्तात्रेय यह तय करता है कि यदि उसका बेटा ज़िंदगी को लेकर अपना नज़रिया नहीं बदलता, तो फिर उसे वृद्धाश्रम भेज देगा। 

इन दो पिता-पुत्रों के बीच सामंजस्य बैठाने की कोशिश में धीरू यानी जिमित त्रिवेदी दिन रात लगा रहता है। क्या दत्तात्रेय रिकॉर्ड अपने नाम कर पाता है?..क्या बाबूलाल जीनव को अलग नज़रिये से देखने लगता है या फिर वृद्धाश्रम भेज दिए जाते हैं?...इन सबके लिए थिएटर जाइए। 

समीक्षा

उम्र महज एक अंक है। बस इसी लाइन पर बुनी कहानी है ‘102 नॉट आउट’। इस फिल्म के ताने-बाने को सौम्य जोशी ने बुना है। फिल्म के डायलॉग काफी मज़ेदार होने के साथ कई जगह दर्शकों को भावुक भी कर जाते हैं। ग़ौरतलब है कि सौम्य जोशी, ‘पीके’, ‘लगे रहो मुन्नाभाई’ ‘3 इडियट’ सरीखे फिल्मों को लिखने वाले अभिजात जोशी के भाई हैं। 

ख़ैर, सौम्य के द्वारा लिखी इस पटकथा को उमेश शुक्ला ने बेहतरीन तरीक़े से परदे पर उतारा है। उन्होंने पिता-पुत्र के बीच की दिलचस्प नोक-झोंक को इमानदारी पूर्वक प्रस्तुत किया है। कहानी काफी संवेदनशील है। साथ ही दर्शकों को उम्र को लेकर एक अलग नज़रिया भी देती है। हालांकि, फिल्म का क्लाइमेक्श अटपटा सा हो गया। 

अब बात अभिनय की करें, तो अमिताभ बच्चन ने अपने किरदार को बेहतरीन तरीके से निभाया है। वहीं ऋषि कपूर ने अपनी अदाकारी से दिल को छू लिया है। दिग्गज अभिनेता है, तो प्रदर्शन भी लाजवाब ही होगा। लेकिन इस फिल्म में धीरू का किरदार निभा रहे जिमित त्रिवेदी ने भी शानदार काम किया है। 

संगीत की बात करें, तो कुछ ख़ास कमाल नहीं किया है। हालांकि, ‘कुल्फी’, ‘वक्त ने किया क्या’ ठीक-ठाक हैं। थिएटर से जाते हुए आप गाना गुनगुनाते नहीं जाएंगे। बस नज़रिया शायद कुछ बदला-बदला हो। 

ख़ास बात

अच्छे मैसेज के साथ बढ़िया एंटरटेनमेंट का वादा करती यह फिल्म वीकेंड में देखने लायक फिल्म है। 

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