Bamfaad Review: परेश रावल के बेटे आदित्य की डेब्यू फिल्म 'बमफाड़' देखी क्या?

परेश रावल और स्वरूप संपत के बेटे आदित्य रावल की डेब्यू फिल्म 'बमफाड़' रिलीज़ हो चुकी है। ओटीटी प्लेटफॉर्म जी-5 पर रिलीज़ हुए इस फिल्म का निर्माण शाइका फिल्म्स और ज़ार पिक्चर्स ने मिलकर किया है। रंजन चंदेल के निर्देशन में यह फिल्म बनी है। आइए जानते हैं, कैसी बनी है 'बमफाड़'। 

aditya rawal in film 'Bamfaad'
फिल्म : बमफाड़
निर्माता : शाइका फिल्म्स, ज़ार फिल्म्स
निर्देशक : रंजन चंदेल
कलाकार : आदित्य रावल, शालिनी पांडेय, शिवम मिश्री, सना अमीन शेख, जतिन सरना, विजय कुमार, विजय वर्मा। 
ओटीटी : ज़ी-5
रेटिंग: 2/5

परेल रावल के बेटे आदित्य, जो विदेश से स्क्रिप्टिंग में स्पेशल डिग्री लेकर लौटे हैं। अब वही आदित्य बतौर एक्टर अपना करियर शुरू कर चुके हैं। डेब्यू मूवी के रूप में 'बमफाड़' को चुना, जो ओटीटी प्लेटफॉर्म पर हाल ही में रिलीज़ हुई। इस फिल्म में ज्यादातर कास्ट के साथ डायरेक्टर भी नया है। ऐसे में यह नई-नवेली फिल्म क्या कुछ कमाल कर पायी है. आइए जानते हैं। 

कहानी

फिल्म की कहानी शुरू होती है 'नाटे' उर्फ नासिर जमाल (आदित्य रावल) के अपने स्कूल में आतंक मचाने से। नासिर अल्हड़, खुशमिजाज और दोस्तों पर जान छिड़कने वाला लड़का है। जवानी का उबाल यूं है कि चंद सेकेंड में ही इनका खून उबाल मारने लगता है। अब नासिर की मुलाकात होती है नीलम (शालिनी पांडे) से और फिर दोनों में प्यार हो जाता है। वहीं शहर के गुंडे जिगर फरीदी (विजय वर्मा) का नीलम से 'जरूरत' वाला कनेक्शन है।

नीलम के बीते कल से बेखबर नासिर सिर्फ उससे इश्क़ किये जा रहा है, लेकिन मामले में ट्विस्ट तब आता है, जब नासिर और जिगर फरीदी का सामना होता है। अब नासिर, नीलम से सवाल करता है, जिसके जवाब में बीता कल खुलता है। नीलम के माता-पिता का मृत्यु, चाची का सांस्कृतिक कार्यक्रम में शामिल होने की सलाह, जिगर की नीलम पर नज़र, प्यार का धोखा और फिर आखिर में 'ज़रूरत' का सामान बनी नीलम की कहानी। 

नासिर और नीलम की 'लव-स्टोरी', जिगर की महत्वकांक्षा। लोकल राजनीति में उलझी 'बमफाड़' आखिर में क्या गुल खिलाती है, जानने के लिए ज़ी-5 पर जाइए और देख लीजिए। 

समीक्षा

फिल्म में आदित्य रावल ने साबित करते हैं कि उनमें गजब की प्रतिभा है। इस कमाल के एक्टर को अच्छा स्क्रिप्ट की दरकार है। वहीं फिल्म में शालिनी पांडेय के पास कुछ खास करने को नहीं था, और जो कुछ उनको दिया गया, उसमें वो कुछ भी नया करने में असफल रही। शालिनी का डिजिटल डेब्यू है। इससे पहले वो फिल्म 'अर्जुन रेड्डी' में नज़र आ चुकी हैं। 

फिल्म में विजय वर्मा भी ठीक रहे हैं, लेकिन अब उनको संभलना होगा, क्योंकि उनके किरदार को देखकर फिल्म 'हासिल' में इरफान खान द्वारा निभाया किरदार सामने उभर आता है। वहीं जतिन सरना भी अपनी भूमिका निभा ले गए, लेकिन एक तरह के किरदारों के निभाने से बचना चाहिए।

वहीं बाकी के किरदारों में 'शाहिद जमाल' के रोल में विजय कुमार का काम अच्छा रहा। ईमानदार दरोगा 'चौरसिया' के किरदार में संजीव भट्टाचार्य असरदार रहे, जबकि 'राजिब मेहंदी' के किरदार में प्रियांक तिवारी, ट्रिपल एक्स सीडी बेचने वाले 'सनम' के रोल में अमरजीत सिंह और 'वालिया' के किरदार में सना अमीन शेख ने भी अपनी भूमिका अच्छी तरह से निभा लिया है। 

कई मुद्दों को उठाने के चक्कर में फिल्म बैठ गई। बेवजह के ट्विस्ट ने फिल्म को कमजोर कर दिया। फिल्म में किरदार तो आते हैं, लेकिन उन किरदारों की तह तक दर्शक पहुंच नहीं पाता है। सबसे ज्यादा अखरा 'लव जेहाद' शब्द। फिल्म में इसकी वजह क्या थी? 

रंजन चंदेल का निर्देशन काफी कमजोर लगा। वह इस दौर में सेवेंटीज़ के अमिताभ बच्चन बनाने क्यों निकले हैं, मामला समझ से परे है। फिल्म के म्यूजिक ठीक है, लेकिन बैकग्राउंड स्कोर ने मिट्टी पलीत कर दी है। कई बार सीन के फील को ही बैकग्राउंड स्कोर ने मार दिया है।

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