'रामायण' मेरे लिए गुरुकुल बन गया था- आनंद सागर

रामानंद सागर के बेटे और 'रामायण' असिस्टेंट डायरेक्टर आनंद सागर ने धारावाहिक को अपना गुरुकुल कहा और साथ ही इस धारावाहिक के बनने की कहानी भी साझा की। आनंद का कहना है कि इस धारावाहिक को 78 सप्ताह तक लगातार शूट किया गया था। 

anand sagar says 'ramayan' is gurukul for me
लॉकडाउन के चलते एक बार फिर से 'रामायण' का प्रसारण किया गया और पहले की ही तरह इस बार भी दर्शकों को उतना ही पसंद आया। 'रामायण' को खत्म हो चुका है और इन दिनों 'उत्तर रामायण' का प्रसारण शुरू हो चुका है। 

'रामायण' को मिल रहे दर्शकों के प्यार से इसे बनाने वाले सागर आर्ट्स के आनंद सागर ने संक्षिप्त चर्चा की। बता दें कि आनंद सागर, रामानंद सागर के बेटे हैं और 'रामायण' में असिस्टेंट डायरेक्टर भी थे। 

'रामायण' से अपने भावनात्मक रिश्ते के बारे में आनंद कहते हैं, ''पापाजी' के समय पर 'रामायण' को बहुत अनौपचारिक और नये तरीके से बनाया गया था। हालांकि, जब एक बार शो चल पड़ा, और टीआरपी मिलने लगी, तब हम लोगों ने अपने क्रू और कलाकारों के साथ 78 हफ्तों तक लगातार शूट किया था। रात-दिन बिना छुट्टी लिये हम काम कर रहे थे।'

इस सफर को आनंद मुश्किल, लेकिन काफी रोमांचकारी बताते हैं। आनंद कहते हैं, ' यह सफर बहुत ही मुश्किल था, लेकिन रोमांचकारी भी था। हम लोगों ने उस समय 'रामायण' ही खाया, पीया और सोया है। यह एक मास्टरपीस है, जो दोबारा बनना मुश्किल है। एक परिवार के रूप में इस कृति से हम भावनात्मक रूप से जुड़े हुए हैं। इससे मैंने काफी कुछ सीखा है।'

आनंद का कहना है कि नई पीढ़ी के लिए 'रामायण' का दोबारा प्रसारण काफी कारगर साबित होने वाला है। वो कहते हैं, 'मुझे आशा ही नहीं विश्वास भी है कि नई पीढ़ी इसे देख रही है और इससे सीख भी रही है। आज भी 'रामायण' एक ऐसा ज्ञान है, जो हमे एक मनुष्य के रूप में जीवन को सादगी और सत्य के साथ जीना सिखाता है। यदि हम अपने अंदर ही माइथोलॉजी के चरित्रों को ढूंढने की कोशिश करें, तो हम उनसे काफी कुछ सीख सकते हैं। उस वक्त घटी घटनाओं को अपने जीवन से जोड़े, तो हम अपने अनुभवों को बेहतर तरीके से समझ सकते हैं।'

वो आगे कहते हैं, 'मुझे पता है कि आज की तारीख में मर्यादा पुरुषोत्तम राम नहीं बन सकते, लेकिन उनके जीवन से सीख लेकर अपने भीतर दूसरे मनुष्यों और पशु-पक्षियों के सद्भावना और संवेदनशीलता रखा जा सकता है।'

धारावाहिक को मिल रही टीआरपी से आनंद काफी खुश हैं। वो कहते हैं कि धारावाहिक को मिल रही टीआरपी साबित करती है कि दर्शक इसे आज भी उसी चाव से देख रहे हैं, जैसे पहले देखते थे। 

आज के समाज पर 'रामायण' के इफेक्टिव होने के सवाल पर कहते हैं, ''रामायण' जितनी तब प्रासंगिक थी, उतनी ही आज भी है। टीआरपी इसके व्यापकता के बारे में बता रही है। इस धारावाहिक को बनाते समय काफी मज़ा आया था और वहीं खुशी इसे देखते हुए दर्शक भी महसूस करते हैं। 

आनंद माइथोलॉजी को हर इंसान के भूत और वर्तमान का हिस्सा बताते हैं। वह कहते हैं, 'मेरा विश्वास है कि माइथोलॉजी हर इंसान के और धर्म के भूत और वर्तमान का हिस्सा है। आगे बढ़ने के लिए इससे सीख लेना और उसका आज के संदर्भ में अनुसरण करना जरूरी है। युवा पीढ़ी यदि 'रामायण' को देखेगी और समझेगी, तो वो अपने आस-आस के वातावरण, विभिन्न प्रजातियों और पशु-पक्षियों को सद्भावना से देखेगी और साथ ही उन्नति भी करेगी।'

अपने पिता रामानंद सागर को असिस्ट करने के अनुभव को साझा करते हुए कहते हैं, 'उनके साथ काम करने का अनुभव काफी अच्छा रहा। मैंने उस दौरान काफी सीखा। 'रामायण' एक तकनीकी चुनौती थी। हमें बहुत सारी शूट ब्लू स्क्रीन पर बहुत बड़ी भीड़ के साथ करनी पड़ती थी। हर सीन को ऐसे सोचना और क्रिएय करना पड़ता था कि वह कंप्यूटर ग्राफिक पर फिट हो सके। बिलकुल ही नया कॉन्सेप्ट था, लेकिन हमें काफी मज़ा आता था।'

आनंद आगे कहते हैं, 'कई बार पापाजी को सेट छोड़ कर अगले एपिसोड को लिखने के लिए जाना पड़ता था और तब मैं ही इंचार्ज होता था। तब कई बार उड़ते हुए वानर या देवताओं को मुझे ही देखना पड़ता था। 'रामायण' मेरे लिए गुरुकुल बन गया था।'

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