Gulabo Sitabo Review: जहन्नुम की गलियों में चूसे हुए आम की गुठली

'गुलाबो सिताबो' उत्तर प्रदेश की एक पुरानी लोककला है, जिसमें तमाशा दिखाने वाला दास्तानों की तरह दो कठपुतलियों को हाथों में पहन लेता है और फिर इन दोनों को आपस में लड़ाते हुए, इनकी कहानी सुनाता है। ठीक इसी तर्ज पर जूही चतुर्वेदी और शूजित सरकार ने 'मिर्ज़ा' और 'बांके' को कठपुतली बना कर पूरी फिल्म में लड़ते दिखाया है। अमिताभ बच्चन और आयुष्मान खुराना स्टारर फिल्म ओटीटी प्लेटफॉर्म अमेज़न प्राइम वीडियो पर डायरेक्ट रिलीज़ हुई है। कैसी बनी है फिल्म, चलिए करते हैं समीक्षा।

Film "Gulabo Sitabo' Review Amitabh bachchan and ayushmann khurrana
फिल्म : गुलाबो सिताबो
निर्माता : रॉनी लाहिरी, शील कुमार
निर्देशक : शूजित सरकार
कलाकार : अमिताभ बच्चन, आयुष्मान खुराना, भूपेंद्र काला, विजय राज
जॉनर : कॉमेडी ड्रामा
ओटीटी : अमेज़न प्राइम वीडियो
रेटिंग : 2/5

अमिताभ बच्चन और आयुष्मान खुराना स्टारर फिल्म, जिसे थिएटर में रिलीज़ करने के लिए बनाया गया, वो डायरेक्ट ओटीटी प्लेटफॉर्म पर उतरी है। शूजित सरकार के निर्देशन में बनी इस फिल्म की कहानी जूही चतुर्वेदी ने लिखी है।

कहानी

लखनऊ का 'फातिमा महल', जिसमें मिर्ज़ा शेख (अमिताभ बच्चन) खुद से उम्र में 15 साल बड़ी बेगम (फार्रुख ज़फर) के साथ रहते हैं। वहीं इस महल में उन्होंने कई किरायेदार रखे हैं। इन्हीं किरायेदारों में से एक हैं बांके रस्तोगी (आयुष्मान खुराना), जो अपनी मां और तीन बहनों के साथ रहते हैं। आटा चक्की से इनका गुज़ारा चलता है। कम उम्र में काम करने लगे, तो पढ़ाई-लिखाई कर नहीं पाए। वहीं आए दिन बांके और मिर्ज़ा में किराया को लेकर तनातनी चलती रहती है और कहानी इनके झगड़ों के साथ ही बढ़ती है।

बड़ा बखेड़ा तो तब खड़ा होता है, जब मिर्ज़ा का एक दोस्त 'फातिमा महल' पर मालिकाना हक़ के लिए दावा करने की सलाह देता है और इसी बीच पुरात्तत्व विभाग की नज़र भी इस हवेली पर पड़ती है। इसके बाद शुरू हो जाती है, रस्साकसी और इसमें जीत उसकी होती है, जो इस रस्साकसी में भाग ही नहीं ले रहा था। अब वो कौन है, जानने के लिए फिल्म देख लीजिए।

समीक्षा

अमिताभ बच्चन ने 'मिर्ज़ा' के किरदार को बेहतरीन तरीक़े से निभाया है। फिल्म की कहानी उनके किरदार के इर्द-गिर्द ही घूमी और उन्होंने अपने किरदार के साथ पूरा न्याय किया। एक बार फिर वो साबित करते हैं कि उन्हें यूं ही नहीं महानायक कहा जाता।

वहीं बॉक्स ऑफिस पर एक के बाद एक हिट देने वाले आयुष्मान खुराना ने देहाती लड़के के किरदार को बखूबी ओढ़ा है। लखनऊ के एक दुकानदार का लहजा और बॉडी लैंग्वेज उन्होंने अच्छी तरह से पकड़ा है।

बाकी के कलाकारों की बात करें, तो बृजेश काला और विजय राज ने भी अच्छा काम किया है। वहीं बेगम बनीं फार्रुख जफर को स्क्रीन टाइम कम मिला, लेकिन फिर भी अपना किरदार बढ़िया तरीके से निभा गई। वहीं बांके की बहन गुड्डो की भूमिका में दिखीं सृष्टि श्रीवास्तव ने जबरदस्त एक्टिंग की। इनके अलावा बाकी सभी कलाकारों ने भी ठीक-ठाक काम किया।

निर्देशन के मामले में इस बार शूजित सरकार निराश करते हैं। किसी कलाकार को गेटअप दे देना और उसे बॉडी लैंग्वेज का पाठ पढ़ा देने भर से बात नहीं बनती है। फिल्म के जरिये जिस कहानी को दर्शकों तक पहुंचाना चाहते हैं, उसे पहुंचाने में शूजित सफल नहीं होते हैं। फिल्म के आखिर में दर्शक कंफ्यूज़ रहता है। किरदारों को लेकर इतना असमंजस क्यों था, वो भी समझ से परे है।

हालांकि, अविक मुखोपाध्याय का कैमरा वर्क कमाल का है। लखनऊ वाले इस फिल्म को देखकर निराश होंगे, क्योंकि वो अपने शहर की जिस खूबसूरती को देखने की उम्मीद कर रहे होंगे, वो उन्हें इस फिल्म में नहीं मिलेगी। इसके अलावा एडिट टेबल पर फिल्म की छंटाई में कोताई बरती गई है, जिससे फिल्म की स्पीड धीमी हो गई है। एक समय में फिल्म से ऊब होने लगती है।

जूही चतुर्वेदी की इस कहानी को लेकर काफी हंगामा मचा था, लेकिन फिल्म देखने के बाद शायद दावा करने वाला पीछे हट जाए। अच्छे-खासे प्लॉट पर जूही कहानी बुन नहीं पाई हैं। उत्तर प्रदेश की लोककला 'गुलाबो सिताबो' की तर्ज पर इस फिल्म की कहानी को लिखा गया, लेकिन यह बात भूल गए कि 'गुलाबो सिताबो' सिर्फ लड़ती-झगड़ती नहीं हैं, बल्कि उनके लड़ने-झगड़ने में दर्शकों को मनोरंजन भी होता है।

फिल्म के गीत-संगीत की चर्चा न ही की जाए, तो बेहतर होगा। दर्शक का दिमाग़ कहानी और किरदारों को समझने, सुलझाने में लगा रहता है और अचानक से धीरे से शुरू होकर बंद हो जाते संगीत पर किसी का ध्यान नहीं जाता है।

...और आखिर में जाते-जाते 'गुलाबो खूब लड़ैं, सिताबो खूब लड़ैं।' 

टिप्पणियाँ

बेनामी ने कहा…
महा घटिया पकाऊ डिजिटल फिल्म है - ऐसी घटिया चींजें खरीदने से अच्छा है अमेज़ोन प्राइम पैसा गरीबों को दान कर दे - अच्छा हुआ थियेटर में रिलीज़ नहीं हुई , शो का भाडा तक नहीं निकलता - अब तो सुजीत सरकार और जूही चर्तुवेदी को वापस अपने गाँव लौट जाना चाहिए -
बेनामी ने कहा…
सही कहा 👌🤣🤣🤣