फिल्म समीक्षा : परमाणु : द स्टोरी ऑफ पोखरण

इस सप्ताह ‘परमाणु : द स्टोरी ऑफ पोखरण’ सिनेमाघर में आखिर उतर ही आई। साल 1998 में हुए परमाणु परीक्षण पर बनी इस फिल्म में जॉन अब्राहम, बोमन ईरानी, डायना पेंटी. अनुजा साठे मुख्य भूमिका में हैं। फिल्म का निर्देशन अभिषेक शर्मा ने किया है। आइए करते हैं समीक्षा...

फिल्म समीक्षा
फिल्म : परमाणु : द स्टोरी ऑफ पोखरण
निर्माता : जेए एंटरटेनमेंट, ज़ी स्टूडियो, केवायटीए (कायटा) प्रोडक्शन
निर्देशक : अभिषेक शर्मा
कलाकार : जॉन अब्राहम, डायना पेंटी, बोमन ईरानी, अनुजा साठे
संगीत : सचिन-जिगर
जॉनर : हिस्टोरिकल एक्शन ड्रामा
रेटिंग 3/5

लंबे समय तक विवादों में फंसे रहने और फिर कानूनी झगड़े से गुजरते हुए आखिर जॉन अब्राहम अपनी फिल्म दर्शकों तक ले ही आए हैं। एक सच्ची घटना पर आधारित इस फिल्म के लेखन से लेकर अभिनय तक सभी क्षेत्रों में तारीफ की जानी चाहिए। अभिषेक शर्मा के निर्देशन में बनी इस फिल्म की समीक्षा करते हैं। 

कहानी

फिल्म की कहानी साल 1995 से शुरू होती है, जब पीएमओ के एक जूनियर ब्यूरोक्रेट अश्वत रैना यानी जॉन अब्राहम भारत के परमाणु परीक्षण पर एक रिपोर्ट तैयार करके सरकारा को सौंपते हैं। लेकिन उस रिपोर्ट को अच्छी तरह से न पढ़ पाने की वजह से परमाणु मिशन जस का तस रहता है। 

वहीं मिशन के विफल होने का दोष अश्वत पर मढ़ा जाता है। इसके बावजूद भी रिपोर्ट को किसी ने गौर से नहीं पढ़ा और कई चीज़ों को नज़र अंदाज़ किया गया। मामले के इस तरह उलझने की वजह से अश्वत की नौकरी चली जाती है और वो मसूरी वापस आ जाता है। 

अश्वत की पत्नी सुषमा रैना यानी अनुजा साठे एक एस्ट्रो फिजिसिस्ट है। जबकि मसूरी वापस लौटने के बाद अश्वत बच्चों को लोक सेवा आयोग की परीक्षा के लिए पढ़ाने लगता है। तभी दिल्ली में सरकार बदलती है और फिर परमाणु परीक्षण की बात उठने लगती है। 

ऐसे में प्रधानमंत्री के प्रिंसिपल सचिव एक बार फिर उस मिशन पर काम करने की तैयारी शुरू करते हैं और इस मिशन की बागडौर अश्वत को सौंपा जाता है। अश्वत भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर, डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गेनाइजेशन, रॉ, भारतीय सेना और स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन इत्यादि से लोगों को चुनकर एक टीम बनाता है। 

अब जब परमाणु परीक्षण के लिए टीम अपना डेरा राजस्थान के पोखरण में डालती है, तब अमेरिकन सेटलाइट उनकी राह का रोड़ा बनती है। ख़ैर, सभी बाधाओं को पार करते हुए अश्वत की टीम परमाणु परीक्षण कर लेती है।

समीक्षा 

सबसे पहले बात करते हैं फिल्म के लेखन की। इस फिल्म के लेखन की जितनी भी तारीफ की जाए कम है। साईवेन क्यूड्रास और संयुक्ता चावला शेख के साथ अभिषेक ने इस फिल्म की स्क्रिप्ट तैयार की है। फिल्म में कुछ भी आपको ग़ैर-वाजिब नहीं लगेगा। 

अभिषेक शर्मा ने परमाणु परीक्षण की इस कहानी को बड़े ही सधे अंदाज़ में पेश किया है। नतीजे से तो सभी अवगत थे, लेकिन उसके पीछे की कहानी को जिस तरह बयां किया गया, वो वाकई काबिल-ए-तारीफ है। 

फिल्म में रियल फुटेज का अच्छा इस्तेमाल किया गया है। ख़ासतौर पर नेताओं के भाषण। वहीं अटल बिहारी वाजपेयी और एपीजे अब्दुल कलाम की तस्वीरें भी फिल्म में इस्तेमाल की गई है। परमाणु परीक्षण में इन दोनों की अहम भूमिका रही है। 

अब अभिनय के फ्रंट पर बात करें, तो जॉन ने अपने किरदार के साथ इंसाफ किया है। हालांकि, उनके किरदार में ‘चक दे इंडिया’ के शाहरुख की झलक दिखने लगती है। खैर, डाना पेंटी के लिए कुछ खास काम तो नहीं था, फिर भी उन्होंने अपने किरदार के लिए काफी मेहनत की है। 

इसके अलावा बोमन ईरानी ने भी शानदार काम किया है। योगेंद्र टिक्कू, अनुजा साठे और विकास कुमार का भी प्रदर्शन अच्छा है। 

ख़ास बात

परमाणु परीक्षण के पीछे की कहानी जानने में दिलचस्पी है, तो यह फिल्म ज़रूर देखनी चाहिए। वहीं देशभक्ति फिल्म देखना आपको पसंद है, तो यह फिल्म देखी जा सकती है। 

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