फिल्म समीक्षा: शुभ मंगल सावधान

भूमि पेडनेकर और आयुष्मान खुराना की जोड़ी वाली फिल्म ‘शुभ मंगल सावधान’ रिलीज़ हुई है। आर एस प्रसन्ना के निर्देशन में बनी यह फिल्म साल 2013 में आई तमिल फिल्म ‘कल्याण समयाल साधम’ की हिंदी रीमेक है। मर्दाना कमज़ोरी के विषय पर बनी यह फिल्म कैसी है, आइए करते हैं फिल्म की समीक्षा...

भूमि पेडनेकर और आयुष्मान खुराना फिल्म शुभ मंगल सावधान में
फिल्म : शुभ मंगल सावधान
निर्माता : आनंद एल राय, कृषिका लुल्ला
निर्देशक : आर एस प्रसन्ना
कलाकार : भूमि पेडनेकर, आयुष्मान खुराना, ब्रिजेंद्र काला, सीमा पाहवा, अंशुल चौहान, अमोल बजाज
संगीतकार : तनिष्क, वायु
जॉनर : सोशल कॉमेडी ड्रामा
रेटिंग : 4/5


निर्देशक आर एस प्रसन्ना ‘मर्दाना कमजोरी’ के विषय पर आधारित कहानी ‘शुभ मंगल सावधान’ के रूप में लेकर आए हैं। यह फिल्म साल 2013 में आई तमिल फिल्म ‘कल्याण समयाल साधम’ की रीमेक है और इस फिल्म में ‘दम लगा के हईशा’ वाली जोड़ी नज़र आएगी। भूमि के साथ आयुष्मान की ट्यूनिंग कमाल है, लेकिन आइए अब करते हैं कहानी और किरदारों की चर्चा।

कहानी

ये कहानी है दिल्ली के सुगंधा जोशी और मुदित शर्मा की। मुदिश शर्मा यानी आयुष्मान खुराना, सुगंधा यानी भूमि पेडनेकर को देखते ही दिल दे बैठते हैं। मुदित, सुगंधा का पीछे शुरू कर देते हैं, ताकि प्यार का इज़हार किया जा सके। काफी कोशिशों के बाद भी वो सुगंधा को अपने दिल की बात नहीं बता पाते। इधर सुगंधा भी मुदित से प्यार करने लगती है, लेकिन वो कहती नहीं है।

अब एक दिन मुदित अपने मन की बात सुगंधा को बताने की ठान कर चल पड़ता है, लेकिन फिर कुछ ऐसा होता है कि वो एक बार फिर अपने दिल की बात कह नहीं पाता। आमने-सामने बात बनती न देख कर मुदित ऑनलाइन सुगंधा को अपने दिल की बात बता देता है। इस ऑनलाइन प्रपोजल को सुगंधा और उसके घरवाले स्वीकार कर लेते हैं।

दोनों की सगाई होती है और शादी की तारीख़ भी पक्की हो जाती है, लेकिन तभी सुगंधा को मुदित के ‘मर्दाना कमजोरी’ की जानकारी होती है।

मुदित की इस कमजोरी की जानकारी होने के बाद सुगंधा को तो कोई दिक्कत नहीं होती, लेकिन उसके घरवाले इस बात पर बिगड़ जाते हैं और शादी के लिए मना करने लगते हैं। कई ट्विस्ट और टर्न्स से गुजरती इन दोनों की प्रेम कहानी रूलाती, हंसाती और गुदगुदाती है। लेकिन आखिर मुदित की उस कमजोरी का इलाज़ होता है, या नही? या फिर सुगंधा घरवालों की मर्जी से शादी करती है या फिर नहीं...इस सबके लिए फिल्म देखनी होगी।


निर्देशन / पटकथा

फिल्म की पटकथा दमदार है। इसके डायलॉग चुटीले हैं। गंभीर मुद्दे को हंसी-मज़ाक के अंदाज में बखूबू परोसा गया है। वहीं निर्देशन की बात करें, तो आरएस प्रसन्ना ने बेहतर काम किया है। उन्होंने लोकेशन का अच्छी तरह से प्रयोग किया है। इंटरवल से पहले यह फिल्म आपको अपनी सीट छोड़ने नहीं देती है, वहीं इंटरवल के बाद पकड़ कुछ कमज़ोर सी लगती है। फिल्म के क्लाइमैक्स में गुंजाइश बाकी रह गई। फिर भी कुल मिलाकर एंटरटेनिंग फिल्म बना ले गए हैं।

अभिनय

आयुष्मान खुराना और भूमि पेडनेकर की ट्यूनिंग कमाल की है। दोनों ने उम्दा प्रदर्शन किया है। वहीं मां की भूमिका में सीमा पाहवा बेहतरीन रहीं। बाकी कलाकारों में ब्रिजेंद्र काला, अंशुल चौहान और अमोल बजाज भी अच्छे रहे।

संगीत

फिल्म के गाने कुछ ख़ास नहीं है, लेकिन गानों की वजह से फिल्म लंबी नहीं हुई।

ख़ास बात

यदि वीकेंड में अच्छी कहानी को मनोरंजक अंदाज़ में देखने का मन हो, तो यह फिल्म ‘मस्ट वॉच’ वाली लिस्ट में ज़रूर आती है।

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