फिल्म समीक्षा: पोस्टर बॉयज़

सनी देओल, बॉबी देओल और श्रेयस तलपड़े की मुख्य भूमिका वाली फिल्म ‘पोस्टर बॉयज़’ आज रिलीज़ हो गई। यह फिल्म सच्ची घटना पर आधारित साल 2014 में आई मराठी फिल्म ‘पोश्टर बॉयज़’ की हिंदी रीमेक है। इस फिल्म से श्रेयस निर्देशन के क्षेत्र में कदम रख रहे हैं। आइए करते हैं फिल्म की समीक्षा...

फिल्म पोस्टर बॉयज़ में सनी, बॉबी और श्रेयस
फिल्म : पोस्टर बॉयज़
निर्माता : सनी साउंड प्राइवेट लिमिटेड, श्रेयस तलपड़े, दिप्ती तलपड़े
निर्देशक : श्रेयस तलपड़े
कलाकार : सनी देओल, बॉबी देओल, श्रेयस तलपड़े, सोनाली कुलकर्णी, समीक्षा भटनागर
संगीतकार : तनिष्क बागची
रेटिंग : 4/5
जॉनर : कॉमेडी ड्रामा


श्रेयस तलपड़े के निर्देशन में बनी फिल्म ‘पोस्टर बॉयज़’ में सनी देओल अपने भाई अभिनेता बॉबी देओल के साथ मुख्य भूमिका में हैं। हंसी-ठहाकों से भरपूर यह फिल्म चुपके से संदेश दे जाती है। पहली बार निर्देशन कर रहे श्रेयस का काम सराहनीय है, तो वहीं लंबे अरसे से परदे से दूर बॉबी की वापसी के सुखद आसार नज़र आ रहे हैं। 

कहानी

यह कहानी है जंगेठी गांव की। यहां रहते हैं जगावर चौधरी (सनी देओल), जो एक रिटायर्ड आर्मी ऑफिसर है। विनय शर्मा (बॉबी देओल), स्कूल टीचर जो बच्चों को हिंदी पढ़ाता है और अर्जुन सिंह (श्रेयस तलपड़े), ये क्रेडिट कार्ड कंपनी का वसूली करने वाला गुंडा है। 

इन तीनों की ज़िंदगी की एक दिन एक पटरी पर चल पड़ती है, जब इन तीनों की तस्वीर एक पोस्टर पर छप जाती है। पोस्टर भी कोई ऐसा-वैसा नहीं, बल्कि ‘नसबंदी’ के पोस्टर पर तीनों की तस्वीर छप जाती है और फिर इनकी ज़िंदगी में भूचाल आ जाता है। 

‘नसबंदी’ के ‘पोस्टर बॉय’ बनने से जहां एक तरफ जगावर चौधरी की बहन की शादी रुक जाती है, वहीं विनय शर्मा की पत्नी उसे छोड़ कर चली जाती है। वहीं अर्जुन सिंह की खुद की शादी टूट जाती है। 

अब ये तीनों अपने ज़िंदगी में आए इस तूफान के असली दोषियों की खोज़ में निकल पड़ते हैं। इस सफर में वो समाज, प्रशासन और सरकार सबसे टकराते हैं। अब उनको न्याय मिलता है, या फिर वो कोई दूसरा रास्ता निकाल लेते हैं। कौन निकलता है दोषी? ज़िंदगी में आए भूचाल को कैसे संभालते हैं। इन सबके लिए थिएटर जाना होगा। 


निर्देशन / पटकथा

श्रेयस तलपड़े ने निर्देशन की जिम्मेदारी को बखूबी निभाया है। फिल्म पहले सीन के साथ ही सरपट दौड़ती है। फिल्म का फर्स्ट हॉफ की रफ्तार अच्छी रही, लेकिन सेकंड हॉफ में रफ्तार कुछ धीमी हुई। फिर भी फिल्म ने बांधे रखा। 

फिल्म में जबरदस्त वन लाइनर हैं। नसबंदी के मुद्दे को जिस तरह से कहानी में बुना गया है, कमाल का है। एक सीन में जब लोग तीनों का मज़ाक उड़ा रहे होते हैं, तभी एक व्यक्ति कहता है, ‘इन्होंने तो मीटर का कनेक्शन ही कटवा लिया।’ वहीं एक दूसरे सीन में विनय की पत्नी उससे कहती है, ‘पति नाम की चीज़ की जगह पर एक ठंडी ईंट पड़ी हो, तो क्या फायदा?’ कुल मिलाकार हास्य के पुट को मिलाते हुए, फिल्म में बताने की कोशिश की गई है कि नसबंदी कराना कोई बुरी बात नहीं है। 


अभिनय

जगावर चौधरी के किरदार में सनी देओल फबे हैं। उनके वन लाइनर्स कमाल के हैं। वहीं अरसे बाद परदे पर वापसी कर रहे बॉबी ने विनय शर्मा के किरदार के साथ न्याय किया है। उम्मीद है, इसके बाद वो और ज़्यादा फिल्मों में नज़र आएं। इसके अलावा कैमरे के पीछे के साथ आगे की भी कमाल संभालने वाले श्रेयस तलपड़े ने कमाल की अदाकारी दिखाई है। बाकी के कलाकारों ने भी सराहनीय काम किया है। 

संगीत 

फिल्म का संगीत ठीक-ठाक ही रहा है। ‘कुड़ियां शहर दियां’ के अलावा बाकी गाने भी कुछ ख़ास असर नहीं छोड़ते, लेकिन फिल्म की गति अच्छी होने की वजह से इस ओर ध्यान नहीं जाता। 

ख़ास बात 

सनी के साथ बॉबी देओल को कॉमेडी करते देखना चाहते हैं और आपको कॉमेडी फिल्में पसंद है, तो यह फिल्म ‘मस्ट वॉच’ है। वहीं परिवार के साथ वीकेंड का आनंद उठाने के लिए यह बेहतरीन विकल्प है। 

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